मनसा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मनसा ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] एक देवी का नाम । विशेष—पुराणानुसार यह जरत्कारु मुनि की पत्नि और आस्तीक की माता थी तथा कश्यप की पुत्री और वासुकि नाग की बहिन थी ।
मनसा ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ मानस या अ॰ मनशाहु]
१. कामना । इचछा । उ॰—(क) तन सराय मन पाहरू मनसा उतरी आय । कोउ काहू को है नहीं सब देखे ठोंक बजाय ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) छिन न रहै नंदलाल इहाँ बिनु जो कोउ कोटि सिखावै । सूरदास ज्यों मन ते मनसा अनत कहूँ नहिं जावै ।— सूर (शब्द॰) ।
२. संकल्प । अध्यवसाय । इरादा । उ॰— (क) देव नदी कहँ जोजन जानि किए मनसा कुल कोटि उधारे ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) मानहुँ मदन दुंदुभी दीन्ही । मनसा विश्व विजय कहँ कीन्ही ।—तुलसी (शब्द॰) ।
३. अभिलाषा । मनोरथ । उ॰—(क) मनसा को दाता कहै श्रुति प्रभु प्रवीन को ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) कहा कमी जाको राम धनी । मनसा नाथ मनोरथ पूरण सुखनिधान जाको मौज धनी ।—तुलसी (शब्द॰) ।
४. मन । उ॰—विफल होहिं सब उद्यम ताके । जिमि परद्रोह निरत मनसा के ।—तुलसी (शब्द॰) ।
५. बुद्धि । उ॰—युगल कमल सों मिलन कमल युग युगल कमल ले संग । पाँच कमल मधि युगल कमल लखि मनसा भई अपंग ।—सूर (शब्द॰) ।
६. अभिप्राय । तात्पर्य । प्रयोजन । उ॰—प्रभु मनसहिं लवलीन मनु चलत बाजि छबि पाव । भूषित उड़गन तड़ित घन जनु वर बरहिं नचाव ।— तुलसी (शब्द॰) ।
मनसा ^३ वि॰
१. मन से उत्पन्न ।
२. मन का । उ॰—धर्म विचारत मन में होई । मनसा पाप न लागत कोई ।—सूर (शब्द॰) ।
मनसा ^४ क्रि॰ वि॰ मन से । मन के द्वारा । उ॰—मनसा वाचा कर्मणा हम सों छाड़हु नेहु । राजा की विपदा परी तुम तिनकी सुधि लेहु ।—केशव (शब्द॰) ।
मनसा ^५ संज्ञा पुं॰ दे॰ 'मसी' ।
मनसा ^६ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की घास जो बहुत शीघ्रता से बढ़ती और पशुओं के लिये बहुत पुष्टिकारक समझी जाती है । मकड़ा । मधाना । खमकरा । विशेष दे॰ 'मकड़ा' ।