मनु
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मनु संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. ब्रह्मा के पुत्र जो मनुष्यों के मूल पुरुष माने जाते हैं । विशेष—वेदों में मनु को यज्ञों का आदिप्रवर्तक लिखा है । ऋग्वेद में कण्व और अत्रि को यज्ञप्रवर्तन में मनु का सहायक लिखा है । शतपथ ब्राह्मण में लिखा है कि मनु एक बार जलाशय में हाथ धोते थे; उसी समय उनके हाथ में एक छोटी सी मछली आई । उसने मनु सें अपनी रक्षा की प्रार्थना की और कहा कि आप मेरी रक्षा कीजिए; मैं अपकी भी रक्षा करूगी । उसने मनु से एक आनेवाली बाढ़ की बात कही और उन्हें एक नाव बनाने के लिये कहा । मनु ने उस मछली की रक्षा की; पर वह मछली थोड़े ही दिनों में बहुत बड़ी हो गई । जब बाढ़ आई, मनु अपनी नाव पर बैठकर पानी पर चले और अपनी नाव उस मछली की आड़ में बाँध दी । मछली उत्तर को चली और हिमालय पर्वत की चोटी पर उनकी नाव उसने पहूँचा दी । वहाँ मनु ने अपनी नाव बाँध दी । उस बड़े ओघ से अकेले मनु ही बचे थे । उन्हीं से फिर मनुष्य जाति की वृद्धि हुई । ऐतरेय ब्राह्यण में मनु के अपने पुत्रों में अपनी संपत्ति का विभाग करने का वर्णन मिलता है । उसमें बह भी लिखा है कि उन्होंने नाभानेदिष्ठ को अपनी संपत्ति का भागी नहीं बनाया था । निघंटु में 'मनु' शब्द का पाठ द्युस्थान देवगणों में है और वाजसनय संहिता में मनु को प्रजापति लिखा है । पुराणों और सूयसिद्धांत आदि ज्योतिष के ग्रंथों के अनुसार एक कल्प में चौदह मनुओं का अधिकार होता है और उनके उस अधिकारकाल को मन्वंतर कहते हैं । चौदह मनुओं के नाम ये हैं—(१)स्वायम् । (२) स्वारोचिष् । (३) उत्तम । (४) तामस । (५) रवत । (६) चाक्षुष । (७) वैवस्वत । (८) सावर्णि । (९) दक्षसावर्णि । (१०) ब्रह्मसावर्णि । (११) धमसावर्णि । (१२) रुद्रसावर्णि । (१३) देवसावर्णि और (१४) इंद्रसावर्णि । वतमान मन्वंतर वैवस्वत मनु का है । मनुस्मृति म मनु को विराट् का पुत्र लिखा है और मनु स दस प्रजापतिया की उत्पात्त लिखा है ।
२. विष्णु ।
३. अंतःकरण । मन ।
४. जैनियों के अनुसार एक जिन का नाम ।
५. कृष्णाश्च के एक पुत्र का नाम ।
६. मंत्र ।
७. वेवस्वत मनु ।
८. आग्न ।
९. एक रुद्र का नाम ।
१०. १४ की संख्या ।
११. ब्रह्मा ।
मनु संज्ञा स्त्री॰
१. मनु की स्त्री । मनावी ।
२. बनमेथी का साग । पृक्का ।
मनु ^२ अव्य॰ [हिं॰ मानना] मानों । जैसे, । उ॰—(क) रतन जड़ित कंकण बाजूबंद नगन मुद्रिका सोहै । डार डार मनु मदन विटप तरु विकच देखि मन मोहै ।—सूर (शब्द॰) । (ख) मोर मुकुट की चाद्रकन या राजत नंदनंद । मनु सास सखर की अकस किए सिखर सत चंद ।—बिहारी (शब्द॰) ।