मन्दर
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मंदर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ मन्दर]
१. पुराणानुसार एक पर्वत जिससे देवताओं ने समुद्र को मथा था । मंथ पर्वत । मंदराचल । उ॰—धारन मंदर सुंदर साँवरे, आय बसो मन मंदिर मेरे ।—प्रेमघन॰, भा॰ १, पु॰ २८९ ।
२. मंदार ।
३. स्वर्ग ।
४. मोती का वह हार जिसमें आठ वा सोलह लड़ियाँ हों ।—बृहत् संहिता, पृ॰ ३८५ ।
५. मुकुर । दर्पण । आईना ।
६. कुशद्वीप के एक पर्वत का नाम ।
७. बृहत्संहिता के अनुसार प्रासादों के बीस भेदों में दूसरा । वह प्रासाद जो छकोना हो और जिसका विस्तार तीस हाथ हो । इसमें दस भूमिकाएँ और अनेक कँगूरे होते हैं ।
८. एक वर्ण वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में एक भगण (S:I) होता है ।
मंदर ^२ वि॰
१. मंद । धीमा ।
२. मठा ।
मंदर पु † ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ मन्दिर] दे॰ 'मंदिर' । उ॰—सुरति गही जब मंदर चीना ।—प्राण॰, पृ॰ ३१ ।