मरक

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मरक ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. मृत्यु । मरण ।

२. वह रोग जिसमें थोड़े ही काल में अनेक मनुष्य ग्रस्त होकर मरते हैं । वह भीषण संक्रामक रोग जिसमें बहुत से लोग मरे । मरी ।

३. मार्कड़ेय पुराणानुसार एक जाति का नाम ।

मरक ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हि॰ मरकना(=दवाना)]

१. दबाकर संकेत करना । संकेत । इशारा । उ॰— अर त टरत न बर परै दई मरक यनु मैन । होड़ाहोड़ी बढ़ी चली चित चतुराई नेन ।— बिहारी (शब्द॰) ।

२. हौसला । उ॰—मन की मरक काढ़ि सब दिन कि निधरक ह्वै रस झेलिऐ ।—घनानंद, पृ॰ ४०३ ।

३. खिचाव । उ॰— एक गाँव बसी बैरी ऐसी राखिऐ मरक ।— घनानंद॰, पृ॰ १३५ ।

४. बदला । उ॰—मदन मरक कबहूँ कि काढ़िहै भौरी पुहप लागे बरन बरन महकन ।— घनानंद॰, पृ॰ ३९० ।

५. दे॰ 'मड़क' ।