मरजी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मरजी संज्ञा स्त्री॰ [अं॰ मर्जी]

१. इच्छा । कामना । चाह । उ॰—(क) बरजी हमैं और सुनाइवे को कहि तोष लख्यो सिगरी मरजी ।—तोप (शब्द॰) । (ख) दरजी किते तिते धन गरजी । व्योंतहि पटु पट जिमि नृप मरजी ।—गोपाल (शब्द॰) ।

२. प्रसन्नता । खुशी ।

३. आज्ञा । स्वीकृति । उ॰—(क) वा विधि साँबरे रावरे की न मिली मरजी न मजा । न मजाखै ।— पद्माकर (शब्द॰) । (ख) इनकी सबकी मरजी करिकै अपने मन को समुझावने है ।—ठाकुर (शब्द॰) । (ग) मरजी जो उठी पिय की सुधि लै चपला चमकै न रहै बरजी ।—(शब्द॰) ।