मरोड़ना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मरोड़ना ^१ क्रि॰ सं॰ [हि॰ मोड़ना]

१. एक और से घुमाकर दूसरी ओर फेरना । बल डालना । ऐँठना । उ॰— (क) बाँह मरोरे जात हौ मोहि सोवत लियो जगाय । कहै कबीर पुकारि कै यहि पैड़े ह्वै के जाय ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) गोड़ चाप लै जीभ मरोरी । । दधि ढरकायो भाजन फोरी ।— सूर (शब्द॰) । (ग) कोपि कूदि दोउ धरोसि बहोरी । महि पटकत भजे भुजा मरोरी ।—तुलसी (शब्द॰) । (घ) मोहि झकझोरि डारी कुच को मरोर डारी तोरी डारी कसनि बियोरि डारी बेनी त्यों ।—पद्माकर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—देना ।—डालना ।—पड़ना । मुहा॰—अंग मरोड़ना=अंगड़ाई लेना । उ॰— सब अंग मरोरि मुरो मन मैं झरि पूरि रही रस मैं न भई । गुमान (शब्द॰) । भौड मरोड़ना या दृग (आदि) मरोड़ना=(१) भ्रूभंग करना । आँख से इशारा करना या कनखी मानना । उ॰—(क) अंतर में पति की सुरति गहि गहि गहिकि गुनाह । दृग मरोरि मुख मोरि तिय धुवन देत नहि छाँह ।—पद्माकर (शब्द॰) । (ख) पान दियो हँसि प्यार सों प्यारी बहू लखि त्यों हँसि भौंह मरोरी ।— देव (शब्द॰) । (२) नाक भौंह चढ़ाना । भौंह सिकोड़ना । उ॰— (क) हौ हूँ गही पदुमाकर दौरि सो भौंह मरोरत सेज लौं आई ।—पद्माकर (शब्द॰) । (ख) सुनि सौतिन के गुन की चरता द्विज जू तिय भौंह मरोरन लागी ।—द्विजदेव (शब्द॰) ।

२. ऐंठकर नष्ट करना या मार डालना । उ॰— (क) महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह पीर क्यों न लंकिनो ज्यों लात घात ही मरीर मारियों । तुलसी (शब्द॰) । (ख) माँड़ि मारयो कलह वियोग मारो बोरि कै मरोरि मारयों अभिमान भरयो भय मान्यो है ।— केशव (शब्द॰) । (ग) कपि पुनि उपवन बारिहि तोरी । पंच सेनपति सेन मरोरी ।—पद्माकर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—डालना ।—देना ।

३. पीड़ा देना । दुःख देना । वेदना उत्पन्न करना । उ॰ (क) बार बधू पिय पंथ लखि अंगरानी अंग मोरि । पौढ़ि रही परयंक मनु डारी मदन मरोरि ।— मतिराम (शब्द॰) । (ख) एक आली गई कहि कान में आइ परी जहाँ मैन मरोनी गई ।—वेणी (शब्द॰) ।

४. मलना । मीजना । मसलना । मुहा—हाथ मरोड़ना पु=हाथ मलना । पछताना । उ॰— (क) अब पछताब दरब जस जोरी । करहु स्वर्ग पर हाथ मरोरी ।—जाय़सी (शब्द॰) । (ख) पुरुष पुरातन छाड़ि कर चली आन के साथ । लोभी संगत बोछुड़ी खड़ी मरोरइ हाथ ।—दादू (शब्द॰) । विशष— पुरानी कविताओं में 'मरोड़ना' का रूप प्रायः 'मरोरना' ही पाया जाता है ।

मरोड़ना ^२ क्रि॰ अ॰ पेट ऐंठना । पेट में ऐंठन उत्पन्न होना ।