मर्म

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मर्म संज्ञा पुं॰ [सं॰ मर्म या मर्म्मान्]

१. स्वरूप ।

२. रहस्य । तत्व । भेद । क्रि॰ प्र॰—देना ।—पाना ।—लेना । यौ॰—मर्मज्ञ ।

३. संघिस्थान ।

४. प्राणियो के शरीर में वह स्यान जहाँ आधात पहुँचने से अधिक वेदना हाती है । विशेष— वैद्यक में मास, शिरा, स्नायु, आस्था और सीधे के सान्नपात स्थान का मर्म माना गाया है ओर वहा प्राणी का निवासस्थान लिखा गया है । प्रकृति, स्थान और परिणाम भेद में मर्म पाच प्रकार के हाते हैं और कुल मर्मों का संख्या १०७ मानी गई है । प्रकृति के विचार से मार्गों की संख्या इस प्रकार है— मास मर्म ११, अस्थि मर्म ८, संधि मर्म २०, स्नायु मर्म २७ और शिरा मर्म ४१ । स्थान के विचार से मर्मो की संख्या इस प्रकार है—साकय (सिक्थ) या पैरौं में २२, भुजाआ मे २२ उर और कुक्ष में १२, पृष्ठ में १४ तथा ग्रावा और ऊर्ध्व भाग में ३७ । परिणाम के विचार से मर्मों का संख्या इस प्रकार है— सद्यः प्राणाहर १९, कालांतर मारक ३३, वेकल्पकारक, ४४, रुजाकारक ८ और विशल्यव्न ३ । यौ॰— मर्मच्छेदन । मर्मप्रहार । मर्मभेदक । मर्मभेदी । मर्मवचन । मर्मस्पर्शी ।