मल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. मैल । कीट । जैसे, धातुओं का मल । उ॰—लीली सगुन जो कहहिं बखानी । सोई स्वच्छता करइ मल हानी ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. शरीर से निकलनेवाली मैल या विकार । विशेष—ये मल बारह प्रकार के माने गए हैं ।—(१) वसा, (२) शुक्र, (३) रक्त, (४) मज्जा, (५) मूत्र, (६) विष्ठा, (७) कर्णमल या खूँट, (८) नख, (९) श्लेष्मा या कफ,(१०) आँसू, (११) शरीर के ऊपर जमी हुई मैल और (१२) पसीना ।

३. विष्ठा । पुरीष ।

४. दुषण । विकार ।

५. शुद्धतानाशक पदार्थ ।

६. पाप ।

७. दोष । बुराई । ऐब ।

८. हीरे का एक दोष ।

९. जैन शास्त्रनुसार आत्माश्रित दुष्ट भाव । यह पाँच प्रकार का माना गया है—(१) मिथ्या ज्ञान, (२) अधर्म, (३) शक्ति, (४) हेतु और (५) च्युति ।

१०. कपूर ।

११. प्रकृतिदोष । जैसे, वात, पित्त, कफ ।

मल ^२ वि॰

१. गंदा । अशुद्ध ।

२. नीच । दुष्ट ।

३. नास्तिक [को॰] ।

मल ^३ [देश॰] फीलवानों का एक साकेंतिक शब्द जो हाथियों को उठाने के लिये कहा जाता है ।