मस
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मस पु † ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ मसि] स्याही । रोशनाई । उ॰—सात स्वर्ग को कागद करई । घरतो दुहूँ मस भरई । —जायसी (शब्द॰) ।
मस ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ मशक] मच्छड़ । मशक । उ॰—दादुर काकोदर दसन परं मसन मात ध्याउ । —दीन॰ ग्रं॰, पृ॰ २०९ । यौ॰—मसहरी = दे॰ 'मशहरी' ।
मस ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ श्मश्रु] मोछ निकलने से पहले उसके स्थान पर की रोमावली । उ॰—उनके भी उगती मसों से रस का टपका पड़ना और अपनी परछाई से अकड़ना इत्यादि ।.... शिवप्रसाद (शब्द॰) । मुहा॰—मस भींजना = मूछों का निकलना आरंभ होना । मूछों की रेखा दिखाई पड़ने लगना । उ॰—उठत वैस मस भींजत सलोने सुठि सोमा देखवैया बिनु बित ही बिकैहैं । — (शब्द॰) ।
मस ^४ संज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे॰ 'मसा' ।
मस ^६ संज्ञा पुं॰ [अ॰]
१. चूसना । चूपण ।
२. छूना ।
३. पसंद । रूचि [को॰] ।