माँड़ी
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]माँड़ी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ मण्ड]
१. भात का पसावन । पीच । साँड़ ।
२. कपड़े या सूत के ऊपर चढ़ाया जानेवाला कलफ जो भिन्न भिन्न कपड़ों के लिये भिन्न भिन्न प्रकार से तैयार किया जाता है । उ॰—सुरति ताना करै, पवन भरनी भरै, माँड़ी प्रेम अँग अँग भोनै ।— पलटू॰, पृ॰ २५ । विशेष— यह माँड़ी आटे, मैदे अनेक प्रकार के चावलों तथा कुछ बीजों से तैयार की जाती है और प्रायः लेई के रूप में होती है । कपड़ों में इसकी सहायता से कड़ापन या करारापन लाया जाता है । क्रि॰ प्र॰—देना ।—लगाना ।