माठ
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]माठ ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] मार्ग । पंथ । सड़क [को॰] ।
माठ ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ मीठा] एक प्रकार की मिठाई । उ॰— भइ जो मिठाई कही न जाई । सुख मेलत खत जाय बिलाई । मतलड़ छाल और मरकोरी । माठ पिराँके और वुँदौरी ।— जायसी (शब्द॰) । विशेष— मैदे की एक मोटी और बड़ी पूरी पकाकर शक्कर के पाग में उसे पाग लेते हैं । इसी को माठ कहते हैं । यही मिठाई जब छोटे आकार में बनाई जाती है, तब उसे 'मठरी' वा 'टिकिया' कहते हैं । मठरी नमकीन भी बनाई जाती है ।
माठ ^३ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ मटकी(सं॰ मात्त)] मिट्टी का पात्र जिसमें कोई तरल पदार्थ भरा जाय । मटकी । उ॰— (क) मानो मजीठ की माठ ढरी इक ओर ते चाँदनी बोरत आवत । -शंभु कवि (शब्द॰) । (ख) धरत जहाँ ही जहाँ पग है सुप्यारी तहाँ, मंजुल मजीठ ही की माठ सी धरत जात ।—पद्माकर (शब्द॰) । (ग) स्वामिदसा लखि लखन सखा कपि पघिले हैं आँच माठ मानो घिय के ।— तुलसी (शब्द॰) । (घ) टूट कंध सिर परै निरारे । माठ मँजीठ जानु रण ढारे ।— जायसी (शब्द॰) । विशेष— कविता में यह शब्द प्रायः स्त्रीलिंग ही मिलता है ।
माठ † ^४ वि॰ [सं॰ मष्ट, प्रा॰ मट्ठ] मौन । दे॰ 'मष्ट' । उ॰—(क) रह रह, सुंदरि, माठ करि, हलफल लग्गी काइ ।— ढोला॰, दू॰ ३२१ । (ख) काइ लवंतउ माठि करि परदेशी प्रिय आँणि ।— ढोला॰, दू॰ ३४ । मुहा॰—माठ करना= दे॰ 'मष्ट' शब्द का मुहावरा ।