माड़ना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]माड़ना पु ^१ क्रि॰ अ॰ [सं॰ मणउ] ठानना । मचाना । करना । उ॰— (क) निरखि यदुवंश को रहस मन में भयो देखि अनिरुद्ध सों युद्ध माड़यौ ।— सूर (शब्द॰) । (ख) मधुसूदन यह विरह अरु अरि नित माड़त रार । करुनानिधि अब यहि समय अपनी बिरद विचार ।— रसनिधि (शब्द॰) । (ग) ताते कठिन कुठार अब रामहिं लों लण माड़ि ।— केशव (शब्द॰) । (घ) हौं तुम सों फिर युद्धहिं माड़ौ । क्षत्रिय वंश को वैर लै छाड़ौं ।— केशव (शब्द॰) । (ङ) मनोज मख माड़यौ नाभि कुंड में ।— देव (शब्द॰) ।
माड़ना ^२ क्रि॰ स॰ [सं॰ मण्डन]
१. मंडित करना । भूषित करना ।
२. धारण करना । पहनना । उ॰— सब शोकन छाँड़ौं भूषण माँड़ौं कीजै विविध वधाये ।— केशव (शब्द॰) ।
३. आदर करना । पूजना । उ॰— ताते ऋषिराज सबै तुम छाँड़ौ । भूदेव सनाढयन के पद माड़ौं ।— केशव (शब्द॰) ।
माड़ना ^२ क्रि॰ स॰ [सं॰ मर्दन]
१. मर्दन करना । पैर या हाथ से मसलना । मलना । उ॰— काउ काजर काउ वदन माड़ती हषहिं करहिं कलोल ।— सूर (शब्द॰) ।
२. घूमना । फिरना । उ॰,—डटा वस्तु फिर ताहि न छाड़ै । माखन हित सब के घर माड़े ।— विश्राम (शब्द॰) ।