माया
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]माया शक्ति ।
११. जीव (को॰) ।
१२. ज्योतिष में शुक्र की गति के अनुसार तीन तीन नक्षत्रों की जो एक वीथी मानी गई है, उनमें से एक, जो हस्त, विशाखा और चित्रा नक्षत्र में होती है ।
१३. एक ऋषि (को॰) ।
१४. मेंषराशि (को॰) ।
१५. अग्नि (को॰) ।
१६. एक प्रकार का धान्य (को॰) ।
१७. माक्षइक धातु (को॰)
१८. सूर्य का रथ (को॰) ।
माया ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. लक्ष्मी ।
२. द्रव्य । धन । संपत्ति । दौलत । उ॰— (क) माया त्यागे क्या भया मान तजा नहिं जाय ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) बड़ माया को दोष यह जो कबहूँ घटि जाय । तौ रहीम मरिबो भलो दुख सहि जियैं बलाय ।—रहीम (शब्द॰) । (ग) जो चाहै माया बहु जोरी करै अनर्थ सो लाख करोवी ।—निश्चल (शब्द॰) ।
३. अविद्या । अज्ञानता । भ्रम ।
४. छल । कपट । धोखा । चाल- बाजी । उ॰— (क) सुर माया बस केकई कुसमय कीन्ह कुचाल ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) धरि कै कपट भेष भिक्षुक को दसकंधर तहँ आयो । हरि लीन्हों छिन में माया करि अपने रथ बैठयो ।—सूर (शब्द॰) । (ग) तब रावण मन में कहै करौं एक अव काम । माया का परपंच के रचौं सु लछमन राम ।—हनुमन्नाटक (शब्द॰) । (घ) साहस, अनृत चपलता माया ।—तुलसी (शब्द॰) ।
५. सृष्टि को उत्पत्ति का मुख्य कारण । प्रकृति । उ॰— (क) माया, ब्रह्म जीव जगदीसा । लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) माया माहि नित्य लै पावै । माया हरि पद माहिं समावै ।—सूर (शब्द॰) । (ग) माया जीव काल के करम के सुभाव के करैया राम वेद कहै ऐसी मन गुनिए ।—तुलसी (शब्द॰) ।
६. ईश्वर की वह कल्पित शक्ति जो उसकी आज्ञा से सब काम करती हुई मानी गई है । उ॰— तहँ लखि माया की प्रभुताई । मणि मंदिर सुच सेज सुहाई । —(शब्द॰) ।
७. इंद्रजाल । जादू । छलमय रचना । उ॰—जीती कौ सकै अजय रघुराई । माया ते अस रची न जाई ।—तुलसी (शब्द॰) ।
८. ईद्रवज्रा नामक वर्ण- वृत्त का एक उपभेद । यह वर्णवृत इद्रवज्रा और उपेंद्रवज्रा के मेल से बनता है । इसके दूसरे तथा तीसरे चरण का प्रथम वर्ण लघु होता है । जेसे,— राधा रमा गौरि गिरा सु सीता । इन्है विचारे नित नित्य गीता । कटैं अपारे अघ ओध मीता । ह्वै है सदा तोर भला सुवीता ।
९. एक वर्णवृत्त जिसमें क्रमशः मगण तगण, यगण, सगण और एक गुरु होता है । जैसे,— लीला ही सों बासव जी में अनुरागौ । तीनौ लेकै पालत नीके सुख पागौ । जो जो चाहो सो तुम वासों सब लीजौ । कीजै मेरी और कृपा सो सर भीजौ ।—गुमान (शब्द॰) ।
१०. मय दानव की कन्या जो विश्रवा को ब्याही थी और जिससे खर, दूषण, त्रिशिरा और सूर्पनखा पैदा हुए । उ॰—माया सुत जन में करि लेखा । खर, दूषण, त्रिशिरा सुपनेखा ।— विश्राम (शब्द॰) ।
११. देवताओं में से किसी की कोई लीला, शक्ति, इच्छा वा प्रेरणा । अ॰—(क) रामजी की माया, कहीं धूप कही छाया । (कहावत) । (ख) अति प्रचंड रघुपति कै माया । जेहि न मोह अस को जग जाया ।— तुलसी (शब्द॰) । (ग) तेहि आश्रमहिं मदन जब गयऊ । निज माया बसंत निरयमऊ ।—तुलसी (शब्द॰) । (घ) बोले बिहँसि महेश हरि माया वल जानि जिय ।—तुलसी (शब्द॰) ।
१२. कोई आदरणीय स्त्री ।
१३. प्रज्ञा । बुद्धि । अकल ।
१४. शाठ्य । शठता (को॰) ।
१४. दंभ । गर्व (को॰) ।
१३. दुर्गा का एक नाम ।
१७. बुद्धदेव (गौतम) की माता का नाम । .यौ॰—मायाकार । मायाजीवी ।
माया पु† ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हि॰ माता] माता । माँ । जननी । उ॰— बिनवै रतनसेन की माया । माथे छात पाट नित पाया ।—जायसी (शब्द॰) ।
माया पु † ^३ संज्ञा स्त्री॰ [हि॰ ममता]
१. किसी को अपना समझने का भाव । उ॰— उसपर तुम्हें न हो, पर उसकी तुमपर ममता माया है ।—साकेत, पृ॰ ३७० ।
२. कृपा । दया । अनुग्रह । उ॰— (क) भलेहिं आय अब माया कीजै । पहुँनाई कहँ आयसु दीजै ।— जायसी (शब्द॰) । (ख) साँचेहु उनके मोह न माया । उदासीन धन धाम न जाया ।— तुलसी (शब्द॰) । (ग) डंड एक माया कर मोरे । जोगिनि होउँ चलै संग तोरे ।—जायसी (शब्द॰) ।
माया ^४ संज्ञा पुं॰ [फा॰ मायह्]
१. उपकरण । सामान ।
२. योग्यता । काविल होना ।
३. पूँजी । धन । दौलत [को॰] । यौ॰—मायादार =धनी । पूँजीवाला । मालदार ।