मार
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मार ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. कामदेव । उ॰—(क) क्रीडत गिलोल जब लाल कर तब मार जानि चापक सुमन ।—पृ॰ रा॰, १ । ७२७ । (ख) ऐसौ और न जानिवी जग अनिति कर नार । जामँ उपज्यौ सरन सौ ताकौ वेधन मार ।— स॰ सप्तक, पृ॰ ३६५ ।
२. विघ्न ।
३. विष । जहर ।
४. धतूरा ।
५. मारण । मार डालना । वध (को॰) ।
६. मृत्यु । मौत । मरण (को॰) ।
मार ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हि॰ मारना]
१. मारने की क्रिया या भाव ।
२. आघात । चोट ।
३. जिस वस्तु पर मार पड़े । निशाना ।
४. मार पीट ।
५. कष्ट । पीड़ा । क्लेश ।
६. युद्ध । लड़ाई । यौ॰—मारकाट । मारधाड़=मारपीट । मारपछड़=लड़ाई झगड़ा या मार पेच । मारपेच ।
मार ^३ अव्य॰ [हि॰ मारना]
१. अत्यंत । बहुत । उ॰— (क) सुनत द्वारावती मार उतसाँ भयो... ।—सूर (शब्द॰) । (ख) सान की अटारी चित्रसारी मार जारी जैसे घास की अटारी जर गई फिरे बाँस ते ।— राम (शब्द॰) ।
मार पु ^४ संज्ञा स्त्री॰ [हि॰ पाला] माल । उ॰— असल कपोलै आरसी बाहू चंपक मार ।—केशव (शब्द॰) ।
मार ^५ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] काली मिट्टि की जमिन । करैल । मट्टी का भूमि । मरवा भूमि ।
मार संज्ञा पुं॰ [फा॰] सर्प । साँप । उ॰— कई मार हुआ है कई नवल कई प्यासा झूका कँई जल ।— दक्खिनी पृ॰ ३२४ ।