मारग

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मारग पु † संज्ञा पुं॰ [सं॰ मार्ग] राह । रास्ता । मार्ग । उ॰— (क) मारग हुत जो अँधेर असूझा । भा उजेर सब जाना बूझा ।— जायसी (शब्द॰) । (ख) मारग चलहिं पयादेहि पाएँ । कोतल संग जाहि ड़ोरियाएँ ।—तुलसी (शब्द॰) । (ग) सवहि भाँति पिय सेवा करिहौं । भारग जनित सकल श्रम हरिहौं ।—तुलसी (शब्द॰) । मुहा॰—मारगचीन्हना=मार्ग पहचानना । उद्देश्यसिद्धि के लिये रास्ता जान लेना । उ॰— दीपक लेसि जगत कहँ दीन्हा । भा निरमल जग मारग चीन्हा ।—जायसी (शब्द॰) । मारग मारना=रास्ते में पाथिक को लूट लेना । उ॰— मारग मारि महिसुर मारि कुमारग कोटिक के धन लीयो ।—तुलसी (शब्द॰) । मारग लगाना=रास्ते लगना । रास्ता लेना । चला जाना । उ॰—(क) जोगी होहु तो जुक्ति यो माँगहु । भुगुति लेहु लै मारग लागहु ।— जायसी (शब्द॰) । (ख) यह सुनि मुनि मारग लगे सुख पायो नरदेव ।— केशव (शब्द॰) । मारग लेना=दे॰ 'मारग लगना' ।