मारू

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मारू ^१ संज्ञा पुं॰ [हि॰ मारना]

१. राग जो युद्ध के समय बजाय़ा और गाया जाता है । उ॰— (क) भेरि नफीरि बाज सहनाई । मारू राग सुभट सुखदाई । —तुलसी (शब्द॰) । (ख) सैयद समर्थ भूप अली अकवर दल चलन बजाय मारू दुंदुभी धुकान की ।— गुमान (शब्द॰) । (ग) मारवणी भगताविया मारू राग निपाई । दूहा संदेश तणों दीया तियाँ सिखाई ।—ढ़ोला॰, दु॰ १०९ । (घ) रण की टंकार गडे दुंदुंभी में मारू बाजे तेरे जीय ऐसी रुद्र मेरी ओर लरैगी ।— हनुमान (शब्द॰) ।

२. बहुत बड़ा डंका या नगाड़ा । जंगी धौसा । उ॰— उस काल मारू जो बजाता था, सो तो मेघ सा गजता था ।— लल्लू (शब्द॰) । विशेष— इसमें सब शुद्ध स्वर लगते है । यह श्री राग का पुत्र माना जाता है । इसे 'माँड़' और 'माँणा' भी कहते है । वीर रस का व्यंजक यह राग श्रृंगार रस का भी प्रावही है । मारवाड़ में यह राग विशेष लोकप्रिय है ।

मारू ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ मरूभुमि]

१. मरुदेश के निवासी । मारवाड़ के रहनेवाले । उ॰— प्यासे दुपहर जेठ के थके सबै जल सोध । मरू धर पाय मतीरहु मारू कहत पयोवि । —बिहारी (शब्द॰) ।

२. मरू देश । मारवाड़ । उ॰—(क) मारू देस उपन्नियाँ सर ज्यउँ पध्यरियाह । — ढोला॰ दू॰ ६६७ । (ख) मारू काँमिणि दिखणी धर हरि दीपइ तउ होइ ।— ढ़ोला॰, दु॰ ६६८ ।

मारू ^२ वि॰ [सं॰ मारना]

१. मारनेवाला ।

२. ह्वदयवेधक । कटीला । उ॰— काजल लगे हुए मारू नयनों के कटाक्ष अपने सामने तरुणियों को क्या समझते थे । गदाधरसिह (शब्द॰) ।

मारू ^४ संज्ञा पुं॰ [देश॰]

१. एक प्रकार का शाहबलूत । विशेष—यह शिमले और नैनीताल में अधिकता से पाया जाता है । इसकी लकड़ी केवल जलाने और कोयला बनाने के काम में आती है । इसके पत्ते और गोंद चमड़ा रंगने में काम आते है ।

२. काकरेजी रंग ।