मालती

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मालती संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. एक प्रकार की लता का नाम जिसके फुलों में भीनी । मधुर सुंगध होती है । उ॰—(क) सोनजर्द बहु फुली सेवती । रुपमंजरी और मालती ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) देखहु घों प्राणपति निकल अली की गति, मालती सों मिल्यो चाहै लीने साथ आलिनी ।—केशव (शब्द॰) । (ग) घाम घरीक निवारिए कलित ललित अलि पुंज । जमुना तीर तमाल तरु मिलित कुंज । बिहारी (शब्द॰) । विशेष—यह लता हिमालय और विंघ्य पर्वत के जंगलों में अधि- कता से होती है । इसकी पत्तियाँ लंबोतरी और नुकीली, ढाई तीन अंगुल चौड़ी और चार पाँच अंगुल लंबी होती हैं । यह युग्मपत्रक लता है और बड़े से बड़े वृक्ष पर भी घटाटोप फैलती है । इसमें फुलों के धोद लगते हैं । बरसात के प्रारंभ में फूलती है । फूल सफेद होता है जिसमें पंखुड़ियाँ होती है, जिनके नीचे दो अंगुल का लंबा डंठल होता है । इस फुल में भीनी मधुर सुगंध होती है । फूल झड़ने पर वृक्ष के नीचे फूलों का विछोना सा बिछ जाता है । जब वह लता फूलती है, तब भोरें और मधुमक्खियाँ प्रातःकाल उसपर चारों ओर गुंजारती फिरती हैं । यह उद्यानों में भी लगाई जाती है; पर इसके फैलने के लिये बड़े वृक्ष या मंडप आदि की आवश्यकता होती है । यह कवियों की बड़ी पुरानी परिचित पुष्पलता है । कालिदास से लेकर आज तक प्रायःसभी कवियों ने अपनी कविता में इसका वर्णन अवश्य किया है । कितने कोशकारों ने भ्रमवश इसे चमेली भी लिखा है ।

२. छह अक्षरों की एक वर्णभुति का नाम । इसके प्रत्येक चरण में दो जगण होते हैं । उ॰—जो पय जिय जोर । तजौ सब शोर । सरासन तोरि । लहौ सुख कोरि । केशव (शब्द॰) ।

३. बारह अक्षरों की एक वर्णिक वृत्ति का नाम । इसके प्रत्येक चरण में नगण, दो जगण और अंत में रगण होता है । उ॰— विपिन विराध बलिष्ठ देखिए । नृपतनया भयभीत लेखिए । तब रघुनाथ बाण कै हयो । निज निर्णावा पंथ को ठयो ।— केशव (शब्द॰) ।

४. सवैया के मत्तगयंद नामक बेद का दुसरा नाम ।

५. युवती ।

६. चाँदनी । ज्योत्स्ना ।

७. रात्रि । रात ।

८. पाठा । पाढ़ा ।

९. जायफल का पेड़ । जाती ।

मालती टोड़ी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ मालती+टोड़ी] संपुर्ण जाति की एक रागिनी जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं ।