मीर
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मीर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. समुद्र ।
२. पर्वत का एक भाग ।
३. सीमा । हद ।
४. जल ।
मीर ^२ संज्ञा पुं॰ [फा़॰]
१. सरदार । प्रधान । नेता । उ॰—मीर उमराव दिन चार के पाहुना ।—पलटू॰, भा॰ १, पृ॰ १९ ।
२. धार्मिक आचार्य ।
३. सैयद जाति की उपाधि । जैसे, मीर सुलतान अली । किसी बड़े सरदार या रईस का पुत्र ।
५. ताश या रंजीफे में का सबसे बड़ा पत्ता ।
६. वह जो खेल में औरों से पहले जीतकर अपना दाँव खेलकर अलग हो गया हो । (लड़के) ।
७. वह जो सबसे पहले कोई काम विशेषतः प्रतियोगिता का नाम कर डाले । किसी काम में लगे हुए कई आदमियों में से वह जो सबसे पहले काम कर ले । मुहा॰—मीर बनाना=प्रधान बनाना । प्रमुखता प्राप्त करना । उ॰—'हरीचंद' तोहिं पकरि नचाउँ मीर बनू ब्रज बालन में ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ३९६ । मीर होना=पहले जीत जाना या कोई काम कर डालना ।