मूँगफली
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मूँगफली संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ मूँग + फली या सं॰ भूमि + हिं॰ फली]
१. एक प्रकार का क्षुप्र जिसकी खेती फलों के लिये प्रायः सारे भारत में की जाती है । विशेष—यह क्षुप तीन चार फुट तक ऊँचा होकर पृथ्वी पर चारों और फैल जाता है । इसके डंठल रोएँदार होते हैं और सींकों पर दो दो जोड़े पत्ते होते हैं जो आकर में चकवँड़/?/ पत्तों के समान अंडाकार, पर कुछ लंबाई लिए होते हैं । सूर्यास्त होने पर इसके पत्तों के जोड़े आपस में मिल जाते हैं और सूर्योदय होने पर फिर अलग हो जाते हैं । इसमें अरहर/?/ फूलों के से चमकीले पीले रंग के २-३ फूल एक साथ और एक जगह लगते हैं । इसकी जड़ में मिटटी के अंदर फल लगते है जिनके ऊपर कड़ा और खुरदुरा छिलका होता है तथा अं/?/ गोल, कुछ लंबोतरा और पतले लाल छिलकेवाला फल हो/? / है, जो रूप, रँग तथा स्वाद आदि में बादाम से बहुत कुछ मिलता जुलता होता है । इसी कारण इसे 'चिनिया बादाम' भी कहते है । फागुन के आरंभ में ही जमीन को अच्छी तरह जोतकर दो दो फुट की दूरी पर छह छह इंच के गड्ढे बनाकर इसके बीज वो देते है; और यदि एक सप्ताह में बीज अंकुरित नहीं होता, तो कुछ सिंचाई करते हैं । आश्विन कार्तिक में पीले रंग के फूल लगते हैं जो मटर के फूलों के समान होते हैं । इसके डंठलों की गाँठों में से जो सोरें निकलती हैं, वही जमीन के अंदर जाकर फल बन जाती हैं । इस फल के पक जाने पर मिट्टी खोदकर उन्हें निकाल लेते हैं । और धूप में सुखाकर काम में लाते हैं । ये फल या तो साधाणतः यों ही अथवा ऊपरी छिलकों समेत भाड़ में भूनकर खाए जाते हैं । इनसे तेल भी निकाला जाता है जो खाने तथा दूसरे अनेक कामों में आता है । यह तेल जैतून के तेल की तेल की तरह का होता है और प्रायः उसके स्थान में काम आता है । वैद्यक में इसका फल मधुर, स्निग्ध, वात तथा कफकारक और कोष्ठ का बद्ध करनेवाला माना जाता है; और किसी के मत से गरम है और मस्तक तथा वीर्य में गरमी उत्पन्न करनेवाला है ।
२. इस क्षुप का फल । चिनिया बादाम । विलायती मूँग । पर्या॰—भूचणक । भूशिबिका ।