मूक

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मूक ^१ वि॰ [सं॰]

१. जिसके मुँह से अलग वर्ण न निकल सक्ते हों । गूँगा । अवाक् । उ॰—मूक होइ बाचालु पंगु चढ़ै गिरिवर गहन ।—तुलसी (शब्द॰) । विशेष—सुश्रुत ने लिखा है कि गर्भवती को जिस वस्तु के खाने की इच्छा हो, उसके न मिलने से वायु कुपित होता है और गर्भस्थ शिशु कुबड़ा, गूँगा इत्यादि होता है ।

२. दीन । विवश । लाचार ।

मूक ^२ संज्ञा पुं॰

१. दैत्य । दानव ।

२. तक्षक के एक पुत्र का नाम ।

३. गूँगा व्यक्ति (को॰) ।

४. मत्स्य । मछली (को॰) ।