मूल
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मूल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] पेड़ों का वह भाग जो पृथ्वी के नीचे रहता है । जड़ । उ॰—एहि आसा अटक्यो रहै अलि गुलाब के भूल ।—बिहारा (शब्द॰) ।
२. खाने योग्य मोटी मीठी जड़ । कंद । उ॰—संबत सहस मूल फल खाए । साक खाइ सत वर्ष गँवाए ।—तुलसी (शब्द॰) । यौ॰—कंदमूल ।
३. आदि । आरंभ । शुरू । उ॰—(क) उमा संभु सीतारमन जो मा पर अनुकूल । तौ बरनौं सो होइ अंत मध्य अरु मूल ।—विश्राम (शब्द॰) । (ख) सेतु मूल सिव सोभिजै केसव परम प्रकाश ।—केशव (शब्द॰) । आदि कारण । उत्पत्ति का हेतु । उ॰—करम को मूल तन, तन मूल जीव जग जीवन को मूल अति आनंद ही धरिबो ।—पद्माकर (शब्द॰) ।
५. असल जमा या धन जो किसी व्यवहार या व्यवसाय में लगाया जाय । असल । पूँजी । उ॰—और बनिज में नाहीं लाहा, होत मूल में हानि ।—सूर (शब्द॰) ।
६. किसी वस्तु के आरंभ का भाग । शुरू का हिस्सा । जैसे, भुजमूल ।
७. नीवँ । बुनियाद ।
८. ग्रंथकार का निज का वाक्य या लेख जिसपर टीका आदि की जाय । जैसे,—इस संग्रह में रामायण मूल और टीका दोनों हैं ।
९. सत्ताइस नक्षत्रों में से उन्नीसवाँ नक्षत्र । विशेष—इस नक्षत्र के अधिपति निऋति है । इसमें नौ तारे हैं जिनकी आकृति मिलकर सिंह की पूँछ के समान होती है । यह अधोमुख नक्षत्र है । फलित के अनुसार इस नक्षत्र में जन्म लेनेवाला वृद्धावस्था में दरिद्र, शरीर से पीड़ित, कलानुरागी, मातृपितृहंता और आत्मीय लोगों का उपकार करनेवाला होता है ।
१०. निकंज ।
११. पास । समीप ।
१२. सूरन । जिमीकंद ।
१३. पिप्पलीमूल ।
१४. पुष्परमूल ।
१५. किसी वस्तु के नीचे का भाग या तल । पादप्रदेश । जैसे, पर्वतमूल गिरिमूल ।
१६. दुर्ग । राष्ट्र ।
१७. किसी देवता का आदिमंत्र या बीज ।
मूल ^२ वि॰ [सं॰] मुख्य । प्रधान । खास । उ॰—ल्याउ मूल वल बोलि हमारो सोई सैन्य हजूरी । पर चर दौरि वोलि ल्याए द्रुत सैन्य भयंकर भूरी ।—रघुराज (शब्द॰) ।
मूल पु ‡ ^३ संज्ञ पुं॰ [सं॰ मूल्य, प्रा॰ मुल्ल] दे॰ 'मूल्य' । उ॰— पाज क सए साना क टका, चंदन क मूल इंधन विका ।— कीर्ति॰ पृ॰ ६८ ।