मेद
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मेद संज्ञा पुं॰ [सं॰ मेदस्, मेद]
१. शरीर के अंदर की वसा नामक धातु । चरबी । विशेष—सुश्रुत के अनुसार मेद मांस से उत्पन्न धातु है जिससे अस्थि बनती है । भावप्रकाश आदि वैद्यक ग्रंथों में लिखा है कि जब शरीर के अंदर की स्वाभाविक अग्नि से मांस का परिपाक होता है, तब मेद बनता है । इसके इकट्ठा होने का स्थान उदर कहा गया है ।
२. मोटाई या चरबी बढ़ने का रोग ।
३. कस्तूरी । उ॰—(क) रचि रचि साजे चंदन चौरा । पोते अगर मेद औ गौरा ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) कहि केशव मेद जवादि सों माँजि इते पर आँजे में अंजन दै ।—केशव (शब्द॰) ।
४. नीलम की एक छाया ।—रत्नपरीक्षा (शब्द॰) ।
५. एक अंत्यज जाति जिसकी उत्पत्ति मनुस्मृति में वैदेहिक पुरुष और निषाद स्त्री से कही गई है ।