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मोहन

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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मोहन ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. मोह लेनेवाला व्यक्ति । जिसे देखकर जी लुभा जाय । उ॰—लखि मोहन जो मन रहै तो मन राखौ मान ।—बिहारी (शब्द॰) ।

२. श्रीकृष्ण । उ॰—मोहन तेरे नाम को कढ़ो वा दिन छोर । ब्रजवासिन को मोह कै चलो मधु- पुरी ओर ।—रसनिधि (शब्द॰) ।

३. एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में एक सगण और एक जगण होता है । जैसे,—जन राजवंत । जग योगवंत । तिनको उदोत । केहिं भाँति होत ।— केशव (शब्द॰) ।

४. एक प्रकार का तांत्रिक प्रयोग जिससे किसी को बेहोश या मूर्छित करते हैं । उ॰—मारन मोहन बसकरन उच्चाटन अस्थंभ । आकर्षन सब भाँति के पढ़ै सदा करि दंभ ।— (शब्द॰) ।

५. प्राचीन काल का एक प्रकार का अस्त्र जिससे शत्रु मुर्छित किया जाता था । उ॰—बर विद्याधर अस्त्र नाम नंदन जो ऐसो । मोहन, स्वापन, समन, सौम्य, कर्षन, पुनि तैसो ।— पद्माकर (शब्द॰) ।

६. कोल्हु की कोठी अर्थात् वह स्थान जहाँ दबने के लिये ऊख के गाँड़े डाले जाते है । इसे कुंडी और 'घगरा' भी कहते है ।

७. कामदेव के पाँच बाणों में एक बाण का नाम ।

८. धतुरे का पौधा ।

९. शिव का एक नाम (को॰) ।

१०. विष्णु की नौ शक्तियों में एक शक्ति (को॰) ।

११. संभोग । रति । मैथुन (को॰) ।

१२. बारह मात्राओं का एक ताल जिसमें सात आघात औऱ पाँच खाली रहते है । इसका + १ ॰ २ ॰ मृदंग का बोल यह है—धा धा ता गे तेरे कता ३ ॰ ४ ५ ॰ ६ ॰ + कता गदि घेने नाग् देत् तेरे करे । धा ।

मोहन ^२ वि॰ [सं॰] [वि॰ स्त्री॰ मोहिनी] मोह उत्पन्न करनेवाला । उ॰—सब भाँति मनोहर मोहन रुप अनुप हैं भुप कें बालक द्वै । तुलसी (शब्द॰) ।