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मौज

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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मौज संज्ञा स्त्री॰ [अ॰]

१. लहर । तरंग । हिलोर । क्रि॰ प्र॰—आना ।—उठना । मुहा॰—मौज मारना=लहराना । बहना । जैसे,—दरिया मौजें मार रहा है । मौज खाना=लहर मारना । हिलोरा लेना । (लश॰) । लंबी मौज=दूर तक का बहाव । (लश॰) ।

२. मन की उमंग । उछंग । जोश । उ॰—(क) साहब के दरबार में कभी काहु की नाहिं । बंदा मौज न पावही चूक चाकरी माँहि ।—कबीर । (शब्द॰) । (क) कहा कभी जाके राम घनी । मनसा नाथ मनोरथ पूरण निधान जाकी मौज घनी ।—सुर (शब्द॰) । मुहा॰—किसी को मौज आना याकिसी का मौज में आना= उमंग में भरना । अचानक किसी काम के लिये उत्तेजना होना । धुन होना । मौज उठना=मन में उमंग उठना । किसी की मौज पाना=मरजी जानना । इच्छा से अवगत होना ।

३. धुन ।

४. सुख । आनंद । मजा । उ॰—(क) कबिरा हरि की भक्ति कर तजु विषया रस चौज । बार बार नहिं पाइए मानुष जनम की मौज ।—कबीर (शब्द॰) (ख) सोचु परयो मन राधिका कछु कहन न आवै । कछु हरषै कछु दुख करं मन मौज बढ़ावै ।—सूर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—करना ।—उड़ाना ।—मारना ।—मिलना ।—लेना ।

५. प्रभूति । विभव । विभूति । उ॰—रहति न रन जयसाहि मुख लखि लाखन की फौज । जाचि निराखर हू चलै लै लाखन की मौज ।—बिहारी (शब्द॰) ।