मौन
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मौन ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. न बोलने की क्रिया या भाव । चुप रहना । चुप्पी । उ॰—संपत्ति अरु विपत्ति को मिलि चलै प्रभु तहाँ जहाँ नहिं होइ सुमिरन तिहारो । करत दंडवत मैं तुमहिं करुणाकरन कृपा करि ओर मेरे निहारो । सुनत यह बचन हरि करयो अब मौन करि कृपा तोहि पर बीर धारी । संपत्ति अरु विपत्ति को भय न होइहै तिसै सुनै जो यह कथा चित्त धारी ।—सूर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—करना ।—रहना । मुहा॰—मौन गहना या ग्रहण करना=चुप रहना । चुप्पी साधना । न बोलना । उ॰—(क) देखत ही जेहि मौन गही अरु मौन तजे कटु बोल उचारे ।—केशव (शब्द॰) । (ख)मौन गहौं मन मारि रहों निज पीतम की कहों कौन कहानी ।— व्यंग्यार्थ (शब्द॰) । मौन खोलना=चुप रहने के उपरांत बोलना । उ॰—खिनक मौन बाँध खिन खोला । गहेसि जीभ मुख जाइ न बोला ।—जायसी (शब्द॰) । मौन तजना=चुप्पी छोड़ना । बोलने लगना । उ॰—देखत ही जेहि मौन गही अरु मौन तजे कटु बोल उचारे ।—केशव (शब्द॰) । मौन धरना या धारण करना=न बोलना । चुप होना । मौन होना । उ॰—जँह बैठी वृषभानु नंदिनी तँह आए धरि मौन । पड़े पायँ हरि चरण परसि कर छिन अपराध सलौन ।—सूर (शब्द॰) । मौन बाँधना=चुप्पी साधना । चुप हो जाना । उ॰—जो बोले सो मानिक मूँगा । नाहिं तो मौन बाँधु होइ गूँगा ।—जायसी (शब्द॰) । मौन लेना या साधना=मौन धारण करना । चुप होना । न बोलना । उ॰—जिय में न क्रोध करु जाहि अब केहू ठौर नगर जरावे जिन साध्या हम मौन है ।—हनुमन्नाटक (शब्द॰) । मौन सँभारना=मौन साधना । चुप होना ।
२. मुनियों का व्रत । मुनिव्रत ।
३. फागुन महीने का पहला पक्ष ।
४. उदासीनता । खिन्नता । अप्रफुल्लता (को॰) ।
मौन ^२ वि॰ [सं॰ मौनो] जो न बोले । चुप । मौनी । उ॰—(क) हमहुँ कहब अब ठकुर सुहाती । नहिं त मौन रहब दिन राती ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) इतनी सुनन नैन भरि आए प्रेम नंद के लालहि । सूरदास प्रभु रहे मौन ह्वै घोष बात जानि चालहि ।—सूर (शब्द॰) ।
मौन पु ‡ ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ मौण]
१. वरतन । पात्र । उ॰— काढ़ो कोरे कोपर हो अरु काढ़ो घी को मौन । जाति पाँति पहिराय कै सब समदि छतीसो पौन ।—सूर (शब्द॰) ।
२. डब्बा । उ॰—मानहुँ रतन मौन दुइ मूँदे ।—जायसी (शब्द॰) ।
३. मूँज आदि का बना टोकरा या पिटारा ।