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मौर्य

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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मौर्य संज्ञा पुं॰ [सं॰] क्षत्रियों के एक वंश का नाम । विशेष—सम्राट् चंद्रगुप्त और अशोक इसी वंश में उत्पन्न हुए थे । पुराणों में मौर्यो का वर्णसंकर लिखा है और मौर्य वंश का मूलपुरुष 'चंद्रगुप्त' माना गया है । पुराणों के अनुसार चंद्रगुप्त का जन्म मुरा नामक शूद्रा से हुआ था और वह चाणक्य की सहायता से नंदों का नाश कर पाटलिपुत्र का सम्राट हुआ था । (विशेष दे॰ 'चंद्रगुप्त') पर बौद्ध ग्रंथों में 'चंद्रगुप्त' को 'मोरिय' वंश का लिखा है और उसे शुद्ध क्षत्रिय माना है । मौर्य वंश के शुद्ध क्षत्रिय होने की पुष्टि दिव्यावदान में अशोक के मुँह से कहलाए हुए 'दोव अहं क्षत्रियः कथं पलांडु परिभक्षयामि' से भौ होता है, जिसमें अशोक कहता है—'दीव, मैं क्षत्रिय हूँ; मैं प्याज कैस खाऊँ । 'मुरा' शब्द में 'णय' प्रत्यय लगाने से 'मौय' शब्द बहुत खींच खाच से बनता है; पर पालि भाषा में 'मोरिया' शब्द आया है, जिसकी सिद्धि पालि व्याकरण के अनुसार 'मोर' शब्द सो जो 'मयूर' का पालि रूप है, की गई है । यह समझकर जैनियों ने चंद्रगुप्त की माता को नंद के मयूर- पालकों के सरदार की कन्या लिखा है । बुद्धघोष के विपयपिंटक की आत्मकथा का टीका और महावंश का टीका में चंद्रगुप्त को मोरिय नगर के राजा के रानी का पुत्र लिखा है । यह मोरिय नगर हिंदूकुश और चित्राल के मध्य उज्जानक (सं॰ उद्यान) देश में था । महापरिनिर्वाण सुत्र में लिखा है कि जिस समय महात्मा गौतम बुद्ध का कुशीनगर में निर्वाण हुआ था और मल्लराज ने उनकी अंत्येष्टि के अनंतर उनके भस्म और अस्थि को कुशीनगर में चैत्य बनाकर प्रतिष्ठित करना चाहा था, उस समय कपिलवस्तु, राजगृह आदि के राजाओं ने महात्मा बुद्धदेव के धातु को बाँटकर अपने अपने भाग को अपने अपने देश में चैत्य बनाकर रखने के उद्देश्य से कुशीनगर पर चढ़ाई को थी, जिससे महान् उपद्रव की संभावना देख महात्मा द्रोण ने महात्मा बुद्धदेव के धातु को विभक्त कर प्रत्येक को कुछ कुछ भाग देकर झगड़ा शात किया था । उन राजाओं में, जिन्हें महात्मा बुद्धदेव की चिता के भस्म का भाग दिया गया था, पिप्पलीकानन के मोरिया राजा का भी उल्लेख महापरिनिर्वाण सूत्र में है । इससे विदित होता है कि महात्मा बुद्धदेव के परिनिर्वाण काल में पिप्पलीकानन में मोरिय क्षत्रियों का निवास था । इससे मोरिय राजवंश की सत्ता का पता चंद्रगुप्त से बहुत पहले तक चलता है । ये मोरिय लोग शाक्य, लिच्छवि, मल्ल आदि वंश के क्षत्रियों के संबंधी थे । जान पड़ता है, ये लोग काबुल के प्रदेशों के रहनेवाले क्षत्रियों थे; और जब पारसी आर्यों ने भारतीय आर्यों पर आक्रमण करना प्रारंभ किया, तब ये लोग भागकर नेपाल की तराई में चले आए और वहाँ के लोगों को अपने अधिकार में करके इन्होंने छोटे छोटे अनेक राज्य स्थापित किए । इनके आचार आदि पर पारसी आर्यो और मध्य एशिया की अन्य जातियों का प्रभाव पड़ा था; इसलिये मनु जो ने उन्हें व्रात्य क्षत्रिय लिखा है ।— झल्लोमल्लश्च राजन्याद व्रात्याल्लिच्छिविरेवच । नटश्चकरणश्चैव खसोद्रविड एव च । संभव है, बौद्ध हो जाने के कारण ही संस्का रच्युत होने पर इन जातियों को व्रात्यज लिखा गया हो; और इसीलिये पुराणों में चंद्रगुप्त मौर्य के वंश के लिये भी 'वृपल' या वर्णसंकर लिखा गया हो । महावंश के टीकाकर और दिव्याबदान के टीकाकारों का कथन है कि चंद्रगुप्त मोरिय नगर के राजा का पुत्र था । जब मोरिय के राजा का ध्वंस हुआ तब उसकी गर्भवती रानी अपने भाई के साथ बड़ी कठिनता से भागकर पुष्पपुर चली आई और वहीं चंद्रगुप्त का जन्म हुआ । यह चंद्रगुप्त गौए चराया करता था । इसे होनेपर देख चाणक्य- जी अपने आश्रम पर लाए और उपनयन कर अपने साथ तक्षशिला ले गए । जब सिकंदर ने पंजाब पर आक्रमण किया, तब तक्षशिला के ध्वंस होने पर चंद्रगुप्त आचार्य चाणक्य के साथ सिकंदर के शिबिर में था । वील साहब का कथन है कि मोरिय नगर उज्जानक प्रदेश में था, जो हिंदूकुश और चित्राल के मध्य में था । इन सब बातों को देखते हुए जान पड़ता है, जिस प्रकार निस्विश से लिच्छवि, शक से शाक्य आदि राजवंशों के नाम पड़े, उसी प्रकार मोरिय नगर के प्रथम अधिवासी होने के कारण मौर्य राजवंश की भी नाम रखा गया; और आचार व्यवहार की विभिन्नता से पुराणों में उसे 'वृषल' आदि लिखा गया । पारस की सीमा पर रहने के कारण उनके आचार व्यवहार और रहन सहन पर पारसियों का प्रभाव पड़ा था; और चंद्रगुप्त तथा अशोक के समय के गृहों और राजप्रसादों का भी निर्माण पारस के भवनों के ढंग पर ही किया गया था । चंद्रगुप्त के अनतर अशोक मौर्य वंश का सबसे प्रसिद्ध सम्राट हुआ । मौर्य साम्राज्य का ध्वंस शुंगों ने किया । पर विक्रम की आठवी शताब्दी तक इधर उधर मौर्यों के छोटे छोटे राज्यों का पता लगता है । ऐसा प्रसिद्ध है, और जैन ग्रंथों में भी लिखा है कि चितौड़ का गढ़ मौर्य या मोरी राजा चित्रांग ने बनवाया था ।