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यन्त्र

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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यंत्र संज्ञा पुं॰ [सं॰ यन्त्र]

१. तांत्रिकों के अनुसार कुछ विशिष्ट प्रकार से बने हुए आकार या कोष्ठक आदि, जिनमें कुछ अंक या अक्षर आदि लिखे रहते हैं और जिनके अनेक प्रकार के फल माने जाते हैं । तांत्रिक लोग इनमें देवताओं का अधिष्ठान मानते हैं । लोग इन्हें हाथ या गले में पहनते भी हैं । जंतर । यौ॰—यंत्रचेष्टित=बाजीगरी । यंत्रमंत्र । यंत्रमंत्र=जादू, टोना, या टोटका आदि ।

२. विशेष प्रकार से बना हुआ उपकरण; जो किसी विशेष कार्य के लिये प्रस्तुत किया जाय । औजार । जैसे,—(क) वैद्यक में तेल और आसव आदि तैयार करने के अनेक प्रकार के यंत्र होते हैं । (ख) प्राचीन काल में भी अनेक ऐसे यंत्र बनते थे, जिनसे दूर से ही शत्रुओं पर प्रहार किया जाता था ।

३. किसी खास काम के लिये बनाई हुई कल या औजार । जैसे,— आजकल संसार में सैकड़ों प्रकार के यंत्र प्रचलित है, जिनकी सहायता से सैकड़ों हजारों आदमियों का काम एक या दो आदमी कर लेते हैं ।

४. बंदूक ।

५. बाजा । वाद्य ।

६. बाजों के द्वारा होनेवाला संगीत । वाद्यसंगीत ।

७. वीणा । बीन ।

८. ताला । एक प्रकार का बरतन ।

१०. नियंत्रण । यौ॰—यंत्रकरंडिका । यंत्रकर्मकृत्=कलाकार । कारीगर । यंत्रकोविद=मिस्त्री । मशीन के काम में दक्ष । यंत्रगोल । यंत्रतक्षा=यंत्र बनानेवाला । यंत्रतोरण=तोरण जो यंत्र वा मशीन से घूमता हो । यंत्रदृढ=अर्गला वा ताला से बंद । यंत्रपुत्रक । यंत्रप्रवाह=कृत्रिम झरना या सोता । यंत्रमार्ग । यंत्रमुक्त=एक शस्त्र । यंत्रविधि । यंत्रशर=यंत्रचालित बाण ।