सामग्री पर जाएँ

यौ॰

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

[सम्पादन]

शब्दसागर

[सम्पादन]

यौ॰ —अभी अभी =इसी समय । तुरत । तत्काल ।

यौ॰ चिगछग्गुन [बिं॰ चिगछ + गुन] चिकित्सा की विद्या । उ॰—मुनिवर तब तहँ आय के गज चिगछग्गुन कौन । उ॰— रा॰ २७ । ७ ।

यौ॰ —तिलकुट । तिलचट्टा । तिलभुग्गा । तिलशकरी ।

२. छोटा अंश या भाग जो तिल के परिमाण का हो । मुहा॰— तिल की ओझल पहाड़ = किसी छोटी बात के भीतर बड़ी, भारी बात । तिल का ताड़ करना = किसी छोटी बात को बहुत बढ़ा देना । छोटे से मामले को बहुत बड़ा करना या दिखाना । तिल का ताड़ बनना = अतिरंजित होना । उ॰— श्रद्धा के उत्साह वचन, फिर काम प्रेरणा मिल के । भ्रांत अर्थ बन आगे आए बने ताड़ थे तिल के ।— कामायनी, पृ॰ ११० । तिलचावले बाल = कुछ सफेद और कुछ काले बाल । खिचड़ी बाल । तिल चाटना = मुसलमानों के यहाँ विवाह में बिदाई के समय दूल्हे का दुलहिन के हाथ पर रखे हुए काले तिलों का चाटना । विशेष— यह टोटका इसलिये होता है जिसमें दूल्हा सदा अपनी स्त्री के वश में रहे । तिल तिल = थोड़ा थोड़ा । उ॰— धरि स्वामि धर्म सुरंग । बढ़ि रहै तिल तिल अंग ।— ह॰ रासो, पृ॰ १२३ । तिल धरने की जगह न होना = जरा सी भी जगह खाली न रहना । पूरा स्थान छिका रहना । तिल बाँधना = सूर्यकांत शीशे से होकर आए हुए सूर्य कै प्रकाश का केंद्रीभूत होकर बिंदु के रूप में पड़ना । तिल भर = (१) जरा सा । थोड़ा सा । उ॰— रहा चढ़ाउव तोरब भाई । तिल भर भूमि न सकेउ छुड़ाई ।— तुलसी (शब्द॰) । † (२) क्षण भर । थोड़ी देर । (किसी के) तिलों से तेल निकालना = किसी से किसी प्रकार रुपया लेकर वही उसके काम में लगाना ।

३. काले रंग का छोटा दाग जो शरीर पर होता है । उ॰— चिबुक कूप रसरी अलक तिल सु चरस दृग बैल । बारी बयस गुलाब रकी सींचत मन्मथ छैल ।— रसलीन (शब्द॰) । विशेष— सामुद्रिक में तिलों के स्थान भेद से अनेक प्रकार के शुभासुभ फल बतलाए जाते हैं । पुरुष के शरीर में दाहिनी ओर और स्त्री के शरीर में बाई और का तिल अच्छा माना जाता है । हथेली का तिल सौभाग्यसूचक समझा जाता है ।

४. काली बिंदी के आकार का गोदना जिसे स्त्रियाँ शोभा के लिये गाल, ठुड्ढी आदि पर गोदाती हैं ।

५. आँख की पुतली के बीचो बीच की गोल बिंदी जिसमें सामने पड़ी हुई वस्तु का छोटा सा प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है ।