रंजक
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]रंजक ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ रञ्जक]
१. रंगसाज ।
२. रँगरेज ।
३. हिंगुल । ईगुर ।
४. सुश्रुत के अनुसार पेट की एक अग्नि । विशेष—यह पित्त के अंतर्गत मानी जाती है । कहते हैं कि यह यकृत और प्लीहा के बीच में रहती है; और भोजन से जो रस उत्पन्न होता है उसे रंजित करती है ।
५. भिलावाँ ।
६. मेहदी ।
७. लाल चंदन (को॰) ।
रंजक ^२ वि॰ १ रँगनेवाला । जो रँगे ।
२. आनंदकारक । प्रसन्न करनेवाला । जैसे, मनोरंजक ।
रंजक ^३ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ रंचक (=अल्प), फ़ा॰?]
१. वह थोड़ी सी बारुद जो बत्ती लगाने के वास्ते बंदूक की प्याली पर रखी जाती है । उ॰— कैयक हजार एक बार बैरी मारि डारे रंजक दगमि मानो अगिनि रिसाने की ।—भूषण (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—देना ।—भरना । मुहा॰—रंजक उड़ाना=(१) बंदूक या तोप की प्याली में बत्ती लगाने के लिये बारुद रखकर जलाना । (२) पादना । (बाजारु) । रंजक चाट जाना=तोप या बंदूक की प्याली में रखी हुई बारुद का यों ही जलकर रह जाना और उससे गोला या गोली न छूटना । रंजक पिलाना=तोप या बंदूक की प्याली में रंजक रखना ।
२. गाँजे, तमाखू या सुलफे का दम ।(बाजारू) । मुहा॰—रंजक देना=गाँजे आदि का दम लगाना ।
३. वह बात जो किसी को भड़काने या उत्तेजित करने के लिये कंही जाय ।
४. कोई तीखा या चटपटा चूर्ण ।