रकाब
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]रकाब संज्ञा स्त्री॰ [फा़॰]
१. घोड़ों को काठी का पावदान जिसपर पैर रखकर सवार होते हैं और बैठने में जिससे सहारा लेते हैं । घोड़ों की जीन का पावदान । (यह लोहे का एक घेरा होता है, जो जीन में दोंनों ओर रस्सी या तस्में से लटका रहता है ।) मुहा॰—रकाब पर पैर रखना, रकाब मे पाँव रहना = जाने के लिये उद्यत होना । चलने के लिये बिलकुल तैयार होना । जैसे,—(क) आप तो पहले से ही रकाब पर पैर रखे हुए हैं । (ख) आप जब आते है, तब रकाब पर पैर रखे आते हैं ।
२. रकाबी । तश्तरी ।