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रज

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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रज संज्ञा पुं॰ [सं॰ रजस्]

१. वह रक्त जो स्त्रियों और स्तनपायी जाति के मादा प्राणियों के योनिमार्ग से प्रतिमास निकलत ा है और प्रायः तीन या चार दिनों तक बराबर निकलता रहता है । आर्तव । कुसुम । ऋतु । विशेष—रज युवावस्था का सूचक होता है और गरम देशों में स्त्रियों के बारहवें या तेरहवें वर्ष ठंढे देशों में सोलहवें या अठारहवें वर्ष निकलने लगता है और प्रायः पचास या पचपन वर्ष की अवस्था तक निकलता रहता है । जब स्त्री गर्भ धारण कर लेती है, तब रज निकलता बंद हो जाता है; और प्रसव के उपरांत फिर निकलने लगता है । हमारे यहा शास्त्रों में कहा है कि जबतक स्त्री रजस्वला न होने लगे, तबतक उसे कोई धार्मिक कृत्य करने का अधिकार नहीं होता; और जिन दिनों स्त्री को रजस्राव होता हो, उन दिनों वह अपवित्र या अशुचि समझी जाती है । रजस्राव हो चुकने पर जव स्त्री स्नान करती है, तब वह गर्भधारण के लिये विशेष उपयुक्त हो जाती है ।

२. सांख्य के अनुसार प्रकृति के तीन गुणों में से दूसरा गुण । विशेष—यह चंचल, प्रवृत्त करनेवाला; दुःखजनक और काम, क्रोध, लोभ आदि को उत्पन्न करनेवाला माना गया है । सत्व तथा तम दोनों गुणों को यही संचालित करता है और इसी के द्वारा मनुष्य में सब प्रकार की उत्तेजना या प्रेरणा उत्पन्न होती है । विशेष दे॰ 'गुण' ।

३. आकाश ।

४. पाप ।

५. जल । पानी । उ॰—रज राजस, आकाश रज, रज युवती में होय । रज धूली, रज पाप, कहि रज जल निर्मल धोय ।—नंददास (शब्द॰) ।

६. प्राचीन समय का एक प्रकार का बाजा, जिसपर चमड़ा मढ़ा जाता था ।

७. जोता हुआ खेत ।

८. बादल ।

९. भाप ।

१०. फूलों का पराग । उ॰—हेमकमल रज मिलि पियराए ।—लक्ष्मणसिंह (शब्द॰) ।

११. आठ परमाणुओं का एक मान या तौल ।

१२. भुवन । लोक ।

१३. पुराणानुसार एक ऋषि का नाम जो वशिष्ठ के पुत्र माने जाते है ।

४. खेत पापडा़ ।

१५. स्कंद की एक सेना का नाम ।

रज ^२ संज्ञा स्त्री॰

१. धूल । गर्द । उ॰—(क) गमन चढ़ै रज पवन प्रसंगा ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) अति शुभ वीथी रज परिहरे ।—केशव (शब्द॰) । (ग) रज राजस न छुवाइए नेह चीकने चित्त ।—बिहारी (शब्द॰) ।

२. रात ।

३. ज्योति । प्रकाश ।

रज ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ रजत] चाँदी । उ॰—(क) पुनि ताम्र के हैं कोटि धर श्रुति कोटि रज के स्वच्छ हैं । तहँ पाँच कोटि परवान के गृह दारु के नव लच्छ हैं ।—विश्राम (शब्द॰) । (ख) भाजन मणि हाटक रज केरे । अति विचित्र बहु भाँति घनेरे ।— विश्राम (शब्द॰) ।

रज ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ रजक] रजक । धोबी । उ॰—(क) शिवनिंदक मतिमंद प्रजा रज निज नय नगर बसाई ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) मारग में एक रज संहारयो सबहि बसन हरि लीन्हें ।— सूर (शब्द॰) ।

रज ^५ संज्ञा पुं॰ [फा़॰ रज़] अंगूर [को॰] ।

रज ^६ वि॰ [फा़॰ रज़] रँगनेवाला [को॰] ।

रज पु ^७ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ रजस्] शूरता । वीरता । रजपूती । उ॰—राजे भाणे राज छोडि राजपूत रौती छोड़ि राउत रनाई छोड़ि राना जू ।—गंग ग्रं॰, पृ॰ ९३ ।