रत
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]रत ^१ संज्ञा पुं॰ [पुं॰]
१. मैथुन । प्रसंग । उ॰—प्रिया को है बिंबाधर मृदुल ज्यों पल्लव नयो । लियो धीरें धीरें रहसि रस मैने रत समै ।—लक्ष्मण (शब्द॰) ।
२. योनि ।
३. लिंग ।
४. प्रेम । प्रीति ।
रत ^२ वि॰
१. प्रेम में पड़ा हुआ । अनुरक्त । आसक्त ।
२. (कार्य आदि में) लगा हुआ । लिप्त । लीन । तत्पर ।
रत पु ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ रक्त, प्रा॰ रत्त] रक्त । खून । लहू । (डिं॰) ।
रत पु ^४ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ ऋतु] दे॰ 'ऋतु' । उ॰—आवी सब रत आमली त्रिया करइ सिणगार ।—ढोला॰, दू॰ ३०३ ।