रत्नत्रय

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

रत्नत्रय संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. जैनों के अनुसार सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र, इन तीनो का समूह जो मनुष्य को उत्कृष्ठ बनानें का साधन समझा जाता है ।

२. बौद्धों के अनुसार बुद्ध, धर्म तथा संघ, (को॰) ।