रत्नत्रय संज्ञा पुं॰ [सं॰] १. जैनों के अनुसार सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र, इन तीनो का समूह जो मनुष्य को उत्कृष्ठ बनानें का साधन समझा जाता है । २. बौद्धों के अनुसार बुद्ध, धर्म तथा संघ, (को॰) ।