रपटना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]रपटना पु † ^१ क्रि॰ अ॰ [सं॰ रफन (= सरकना), मि॰ फ़ा॰ रफ़तन्]
१. नीचे या आगे की ओर फिसलना । जम न सकने के कारण किसी ओर सरकना । जैसे,—गीली मिट्टी में पैर रपटना । उ॰—(क) बाहाँ जोरी निकसे कुज ते रीझि रीझि कहैं बात । कुंडल झलमलात झलकत विवि गात, चकाचौंध सी लागति मेरे इन नैननि आली रपटत पग नहिं ठहरात । राधा- मोहन बने घन चपला ज्यों चमकि मेरी पूतरीन में समात । सूरदास प्रभु के वै वचन सुनहु मधुर मधु अब मोहिं भूली पाँच औ सात ।—सूर (शब्द॰) । (ख) दै पिचकी भजी भीजी तहाँ पर पीछे गुपाल गुलाल उलीचैं । एक ही संग यहाँ रपटे सखि ये भए ऊपर वे भईँ नीचे ।—पद्माकर (शब्द॰) । (ग) हौं अलि आजु गई तरके वाँ महेस जू कालिंदी नीर के कारन । ज्यों पग एक बढ़ायो चहों रपट्यो पग दूसरी लागी पुकारन ।— महेश (शब्द॰) ।
२. शीघ्रता से और बिना ठहरे हुए चलना । बहुत जल्दी जल्दी चलना । झपटना । उ॰—(क) प्रबल पावक बढ़यौ जहाँ काढ़यौ तहाँ डाढ़यौ रपटि लपट भरे भवन—भँहारहौं । तुलसी (शब्द॰) । (ख) रपटत मृगन सरन मारे । हरित बसन सुंदर तनु धारे ।—रघुराज (शब्द॰) । (ग) अनेक अग्ग बाहहीं कितेक मार छाँहहीं । किते परे कराहहीं हँकार सौं रपट्टहीं ।—सूदन (शब्द॰) ।
रपटना ^२ क्रि॰ स॰
१. किसी काम को शीघ्रता से करना । कोई काम चटपट पूरा करना । जैसे,—थोड़ा सा काम और रह गया है; दो दिन में रपट डालेंगे । संयो॰ क्रि॰—डालना ।—देना ।
२. मैथुन करना । प्रसंग करना । (बाजारू) ।