रमना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]रमना ^१ क्रि॰ अ॰ [सं॰ रमण]
१. भोग विलास या सुखप्राप्ति के लिये कहों रहना या ठहरना । मन लगने के कारण कहीं रहना । उ॰—(क) रमि रैन सबै अनतै बितई सो कियो इत आवन भोर ही की ।—केशव (शब्द॰) ।
२. भोग विलास या रति- क्रिडा़ करना । उ॰—(क) अधिवरणा अरू अंग घटि अंत्यज जनि की नारि । तजि विधवा अरु पूजिता रमियहु रसिक बिचारि ।—केशव (शब्द॰) । (ख) राति कहुँ रमि आयो घरै उर मानै नहीं अपराध किए की ।—पद्माकर (शब्द॰) ।
३. आनंद करना । चैन करना । मजा उड़ाना । उ॰—चहुँ भाग वाग तड़ाग । अव देखिए बड़े भाग । फल फूल सो संयुक्त । अलि यों रमै जनु मुक्त ।—केशव (शब्द॰) ।
४. चारों ओर भरपूर होकर रहना । व्याप्त होना । भीनना । उ॰—(क) आघ्यात्मिक होइ आत्मा रमत या सों यह बलराम पुनि ।— गोपाल (शब्द॰) । (ख) पाइ पूरण रूप को रभि भूमि केशव- दास ।—केशव (शब्द॰) । (ग) मैं सिरजा मैं मारहूँ मैं जारौं मैं खाउँ । जलथल मैं ही रमि रह्वौ मोर निरजन नाउँ ।—कबीर (शब्द॰) ।
५. अनुरक्त होना । लग जाना । उ॰—महादेव अवगुन भवन विष्णु सकल गुणघाम । जेहि कर मन रम जाहि सन तेहि तेही सन काम ।—तुलसी (शब्द॰) ।
६. किसी के आस पास फिरना । घुमना । उ॰—(क) कोई परै भैवर जल माँहाँ । फिरत रमहि कोइ देइ न बाँहाँ ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) लसत केतकि के कुल फूल सों । रमत भौर भरे रसमूल सों ।—गुमान (शब्द॰) ।
७. चलता होना । चल देना । गायब हो जाना । उ॰—झाल उठी झोली जली खपरा फूटम फूट । जोगी था सो रम गया, आसन रही भभूत ।—कबीर (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—देना ।—जाना ।
८. आनंदपूर्वक इधर उधर फिरना । विहार करना । मनमाना घुमना । विचरना । उ॰—(क) जे पद पद्म रमत वृंदावन अहि सिर धरि अगनित रिपु मारी ।—सूर (शब्द॰) । (ख) गोपिन संग निसि सरद का रमत रसिक रस रासि । लहाछह अति गतिन की सबन लखे सब पास ।—बिहारी (शब्द॰) ।
रमना ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ आराम या रमण]
१. वह हरा भरा स्थान जहाँ पशु चरने के लिय़े छोड़ दिए जाते है । चराग्रह । उ॰— इत जमना रमना उतै बीच जहानावाद । तामें बसने की करौ करौ न बाद विवाद ।—रसनिधि (शब्द॰) ।
२. वह सुरक्षित स्थान या घेरा, जहाँ पशु शिकार के लिये या पालने के लिये छोड़ दिए जाते है और जहाँ वे स्वच्छंदतापूर्वक रहते हैं ।
३. घेरा । हाता ।
४. बाग ।
५. कोई सुंदर और रमणीक स्थान ।