राजगृह

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

राजगृह संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. राजप्रसाद । राजा का महल ।

२. एक प्राचीन स्थान का नाम जो बिहार में पटने के पास है । विशेष—इसे प्राचीन काल में गिरिब्रज कहते थे । महाभारत के अनुसार यहाँ मगध की राजधानी थी, जिसे कुश के पुत्र वसु ने शोण और गंगा के संगम पर पाँच पहाड़ियों के बीच में बसाया था । महाभारत के समय में यह जरासध की राजधानी थी । महाभारत में उन पाँच पर्वतों का नाम वैहार, वराह, वृषभ, ऋषिगिरि और चैत्यक लिखा है । वायुपुराण में इन्हीं पाँचों का नाम वैभार, गिरिब्रज, रत्नकूट, रत्नाचल और विपुल लिखा है । शोणिक ने विपुलगिर के उतर, जिसे महाभारत के समय चैत्यक कहते थे, सरस्वती नामक एक छोटी सी नदी के पूर्व में नवीन राजगृह बसाया था । इसी को अब राजगिरि कहते हैं । यह शोणिंक महावीर तीर्थकर के काल में था और उनका प्रधान भक्त था । महात्मा बुद्ध के समय नें यही बिंबसार की राजधानी थी । इन पहाड़ों पर अपने अपने समय में महावीर और गौतम बुद्ध ने निवास और उपदेश किया था तथा बौद्धों का प्रथम रांघ यहीं पर संघटित हुआ था, और यहीं पर महाकाश्यप ने त्रिपिटक का प्रथम संग्रह किया था । यहाँ बौद्धों और जैनियों के अनेक मंदिर, स्तूप और चैत्यादि हैं । प्राचीन नगर के भग्नावशेप इसमें अब तक देखे जाते हैं । यहाँ अनेक प्राचीन अभिलेख भी मिले हैं । यह स्थान बौद्धों, जैनों और हिंदुओं का प्रधान तीर्थस्थान है ।