राहु

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

राहु ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. पुराणानुसार नौ ग्रहों में से एक जो विप्रचित्ति के वीर्य से सिंहिका के गर्भ से उत्पन्न हुआ था । उ॰—(क) राहु शशि सूर्य के बीच में बैठि कै मौहनी सों अमृत माँगि लीनो ।—सूर (शब्द॰) । (ख) उधरहिं अंत न होइ निबाहू । कालनेमि जिमि रावन राहू । - तुलसी (शब्द॰) । (ग) हरिहर जस राकेस राहु से । पर अकाज भट सहस बाहु से ।— तुलसी (शब्द॰) । विशेष—यह बहुत बलवान था । कहते हैं, समुद्रमंथन के समय देवताओं के साथ बैठकर इसने चोरी से अमृत पी लिया था । सूर्य और चंद्र ने इसे यह चोरी करते हुए देख लिया था और विष्णु से यह कह दिया था । विष्णु ने सुदर्शन चक्र से इसकी गरदन काट दी । पर यह अमृत पी चुका था इससे इसका मस्तक अमर हो गया था । उसी मस्तक से यह सूर्य और चंद्र को ग्रसने लगा था । और तब से अब तक समय समय पर बराबर ग्रसता आता है जिससे दोनों का ग्रहण लगता है । यही मस्तक राहु और कंबंध केतु कहलाता है ।

२. ग्रहण (को॰) ।

३. उपसर्जन । परित्याग (को॰) ।

४. उपसर्जक ।

५. दक्षिणपश्चिम कोश का ।

राहु ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ राघव] रोहू मछली । उ॰—(क) राहु बेधि भूपति करौ नहिं समर्थ जग कोय ।—सबल (शब्द॰) । (ख) राहू बेधि अर्जुन होइ जीत दुरपदी ब्याह ।—जायसी (शब्द॰) ।