रुक्मिणी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

रुक्मिणी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] श्रीकृष्ण की पटरानियों में से बड़ी और पहली जो विदर्भ देश के राजा भीष्मक की कन्या थी । उ॰— (क) यह सुनि हरि रुक्मिणि सों कह्यौ । ज्यों तुम मोकों चित पर चह्यो । सूर (शब्द॰) । (ख) लखि रुक्मिणी कह्यो मुनि नारद यह कमला अवतार । —सूर (शब्द॰) । विशेष— हरिवंश में लिखा है कि रुक्मणी के सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर श्रीकृष्ण उसपर आसक्त हो गए थे । उधर श्रीकृष्ण के रुपगुण की प्रशंसा सुनकर रुक्मिणी भी उनपर अनृरक्त हो गई थी । पर श्रीकृष्ण ने कंस की हत्या की थी, इसलिये रुक्मी उनसे बहुत द्वेष रखता था । जरासंध ने भीष्मक से कहा था कि तुम अपनी कन्या रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल के साथ कर दो । भीष्मक भी इस प्रस्ताव से सहमत हो गए । जब विवाह का समय आया, तब श्रीकृष्ण और बलराम भी वहाँ पहुँच गए । विवाह से एक दिन पहले रुक्मिणी रथ पर चढ़कर इंद्राणी की पुजा करने गई थी । जब वहु पूजन करके मंदिर से बाहर निकली, तब श्रीकृष्ण उसे अपने रथ पर बैठाकर ले चले । समाचार पाकर शिशुपाल आदि अनेक राजा वहाँ आ पहुँचे और श्रीकृष्ण के साथ उन लोगों का युद्ध होने लगा । श्रीकृष्ण उन सबको परास्त करके रुक्मिणी को वहाँ से हर ले गए । पीछे से रुक्मी ने श्री कृष्ण पर आक्रमण किया और नर्गदा के तट पर श्रीकृष्ण से उसका भीषण युद्ध हुआ । उस युद्ध में रुक्मी को मूर्छित और परास्त करके श्रीकृष्ण द्वारका पहुँचे । वहीं रुक्मिणी के गर्भ से श्रीकृष्ण को दस पुत्र और एक कन्या हुई थी । पुराणों में रुक्मिणी को लक्ष्मी का अवतार कहा है ।