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रूई

विक्षनरी से
मशीन से संस्कारित करने के पहले हाथ से बीज निकालते हुए

संज्ञा

स्त्री.

अनुवाद

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

रूई संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ रोम, प्रा॰ रोवँ, हिं॰ रोवाँ, रोई]

१. कपास के डोरे या कोश के अंदर का घुआ । उ॰—हरि हरि कहत पाप पुनि जाई । पवन लागे ज्या रूई उड़ाई ।—सूर (शब्द॰) । विशेष—यह डोडा पक्कर चिटकने पर ऊन के लच्छे की तरह बाहर निकलता है । इसके रेशे कोमल और घुंघराले होते है, जो बीज के ऊपर चारो ओर लगे होते है, और जिनके अंदर बीज लिपटे रहते है । मोटी और बारीक के भेद से रूई अनेक प्रकार की होती है । कितनो रूइयाँ तो रेशम की भाँति कोमल और चिकनी होती हैं । डेढ़ या डोड से फूटकर बाहर निकलने पर रूई इकट्टी की जाती है । इसके बाद सुख जाने पर लोग इसे ओटनी में ओटकर बीजों से अलग कर लेते हैं । ओटी हुई, रूई धुनी जाती है जिससे उसमें जो बचे खुचे बीज रहते हैं, अलग हो जाते हैं और उसके रेशे फूटकर खुल जाते हैं । इस रूई से पेंडरी या पूनी बनाई जाती है, जिससे सूत काता जाता है । धुनी हुई रूई गद्दी आदि मे भरी जाती है; और उससे सूत कातकर कपड़े बुनते हैं । इसका प्रयोग रासायानिक रीति से बारूद बनाने में भी होता है । रूई को शोरे के तेजाब में गलाते हैं, जिससे यह अत्यंत विस्फोटक हो जाता है । इस 'गन काटन' कहते है और उत्तम बारूद में इसका प्रयोग होता है । इस 'गन काटन' को ईथर या ईथर मिले हुए अलकोहल में मिलाने से एक प्रकार का लेस बनता है । इस लेस को 'कलोडीन' कहते हैं । यह धाव पर तुरंत लगाए जाने पर झिल्ली की तरह सूखकर उसे जोड़ देता है । कलोड़ीन में थोड़ी सी मात्रा ब्रोमाइ़ड़ और आयोडाइड को मिलाकर शीशे पर लगाकर फोटो के लिये गीला 'प्लेट बनाया' जाता है । हिंदुस्तान में रूई के कपड़े का प्रचार वैदिक काल से चला आता है । ब्रह्मण और गृह्वा सूत्रों में तो इसके यज्ञोपवीत और वस्त्र का विधान वर्णभेद से स्पष्ट देखा जाता है; पर युरोप में इसके कपड़े का प्रचार कुछ ही शताब्दियो से हुआ है । सूत के लिये उत्तम रूई वही समझी जाती है, जिसके रेशे लंबे और द्दढ़ होने पर भी पतले और चमकीले होते है । क्रि॰ प्र॰—तूमना ।—धूनना ।—धुनकना । पर्या॰—तूल । पिचु । मुहा॰—रूई का गाला = रूई के गाले की तरह कोमल या सफेद रूई की तरह तूम डालना = (१) अच्छी तरह नोचना । (२) बहुत मारना पीटना । (३) गालिया देना, बखानना । (४) अच्छी तरह छान बीन करना । रूई की तरह धुनना = खूब मारना । अच्छा तरह पीटना । रूई सा = रूई की भाति नरम । कोमल । जैसे,—रूई से हाथ पाँव । अपनी रूई सूत में उल- झना या लिपटना = अपन काम काज में फसना ।

२. इसी प्रकार का काई राआँ । विशेषतः बीजों के ऊपर का रोआँ ।

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