रूपक

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

रूपक संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. मूर्ति । प्रतिकृति । उ॰—बाहुलता रति कंठ बिराजत केशव रूप के रूपकं जो है ।—केशव (शब्द॰) ।

२. वह काव्य जो पात्रों द्वारा खेला जाता है या जिसका अभिनय किया जाता है । द्दश्यकाव्य । विशेष—इसके प्रधान दस भेद है, जिन्हें नाटक, प्रकरण, भाण, व्यायोग, समवकार, डिम, ईहामृग, अंक, बीथी, और प्रहसन कहते हैं । इसके अतिरिक्त नाटिका, त्रोटक, गोष्ठी, सट्टक, नाटयरासक, प्रस्थान, उल्लाप्यक, काव्य़, प्रेखण, रासक, संलापक, श्रीगदित, शिल्पक, विलासिका, दुर्मल्लिका, प्रकरणी, हल्लीश और भाग को उपरूपक कहते हैं । विशेष दे॰ 'नाटक' ।

३. एक अर्थालंकार जिसमें उपमेय में उपमान के साधर्म्य का आरोप करके उसका वर्णन उपमान के रूप से या अभेदरूप किया जाता है । विशेष—रूपक दो प्रकार का होता है ।—तद्रूप और अभेद । जिसमें उपमेय का वर्णन उपमान रूप से होता है उसे तद्रूप रूपक, और जिसमें दोनों की अभेदता का वर्णन होता है, उसे अभेद रूपक कहते हैं । रूपक में आकृति, स्वभाव और शील का अभेद और तद्रूपता दिखाई जाती है । तद्रूप का उ॰—रच्यौ बिधाता दुहुन लै सिगरी शीभा साज । तू सुंदरि शचि दूसरी यह दूजो सुरराज । अभेद का उ॰—नारि कुमुदनी अवध सर रघुबर बिरह दिनेश । अस्त भए विकसित भई निरखि राम राकेश

४. एक परिमाण का नाम । तीन गुंज की तौल ।

५. चाँदी ।

६. रूपया ।

७. संगीत में सात मात्राओं का एक दोताला ताल । विशेष—इसमें दो आघात और एक खाली होता है । इसमें खाली ताल पर ही सम होता है । जब यह दूत में बजाया जाता है, तब इसे तेवरा कहते हैं । इसका मृदंग का बोल इस प्रकार + २ + है—धा दिता तेटेकरा । गदिधेने धा । और तबले का बोल इस + प्रकार है - धिन् धा, धिन् धा, तिन् तिन् ता । धा । यौ॰—रूपक ताल = दे॰ 'रूप—७ ।' रूपकनृत्य = एक प्रकार का नृत्य वा नाच रूपकरूपक = रूपक अलकार का एक भेद । रूपक शब्द॰ = लाक्षणिक वा अलंकृत कथन ।