रोम
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]रोम ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ रोमन्]
१. देह के बाल । रोयाँ । लोम । यौ॰—रोमराजी । रोमावली । रोमलता । मुहा॰—रोम रोम में =शरीर भर में । रोम रोम में रमना = भीतर बाहर सर्वत्र व्याप्त होना । उ॰—कबीर प्याला प्रेम का अंतर लिया लगाय । रोम रोम में रमि रहा, और अमल क्या खाय ।—कबीर सा॰ सं॰, पृ॰ ५० । रोम रोम से =तन मन से । पूर्ण हृदय से । जैसे,—रोम रोम से आशीर्वाद देना ।
२. ऊन । ऊर्ण । उ॰—दासी दास बासि बास रोम पाट को कियो । दायजो विदेह राज भाँति भाँति को कियो ।—केशव (शब्द॰) ।
३. चिड़ियों का पर । पंख (को॰) ।
४. मछलियों का वल्क या शल्क (को॰) ।
५. एक जनपद का नाम । दे॰ 'रोमक' ।
रोम ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. छेद । छिद्र । सुराख ।
२. जल । पानी । यौ॰—रोमनियल =चमड़ा जिसके छेद से रोएँ निकलते हैं ।