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लास्य

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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लास्य संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. नृत्य । नाच ।

२. नाच या नृत्य के दो भेदों में स एक । वह नृत्य जो भाव और ताल आदि के सहित हो, कोमल अंगों के द्वारी हो और । जसके द्वारा श्रृंगार आदि कोमल रसों का उद्दीपन होता हो । विशेष—साधरणतः स्त्रियों का नृत्य ही लास्य कहलाता है । कहते है, शिव और पर्वती ने पहले पहल मिलकर नृत्य किया था । शिव का नृत्य तांडव कहलाया और पार्वती का 'लास्य' । यह लास्य दो प्रकार का कहा गया है—छुरित और यौवत । साहित्यदर्पण में इसके दस अंग बतलाए गए हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं—गेयपद, स्थितपाठ, आसीन, पुष्पगंडिका, प्रच्छेदक, त्रिगूढ़, सैंधबाख्य, द्विगूढ़क, उत्तमीत्तमक और युक्तप्रयुक्त ।

३. नट । अभिनेता । नर्तक (को॰) ।