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लिङ्गपुराण

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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लिंगपुराण संज्ञा पुं॰ [सं॰ लिङ्गपुराण] अठारह पुराणों में से एक जिसमें शिव का माहात्म्य और लिंग की पूजा की महिमा वर्णित है । विशेष—इसकी श्लोकसंख्या ११,॰॰० है । ब्रह्मा इसके मुख्य वक्ता हैं । इसमें शिव ही ब्रह्मा और विष्णु दोनों के अधिष्ठान कहे गए हैं । शिव जी ने अपने मुख से १८ अवतारों का वर्णन किया है । यह एक सांप्रदायिक पुराण है । जिस प्रकार विष्णु ने अपने उपासक अंबरीष राजा की रक्षा की थी, उसी ढंग पर इसमें शिव द्वारा परम शैब दधीचि की रक्षा की कथा लिखी गई है । पहले पद्मकल्प की सृष्टि की उत्पत्ति की कथा देकर फिर वैवस्वत मन्वंतर के राजाओं की वंशावली श्रीकृष्ण के समय तक कही गई है । योग और अध्यात्म्य की दृष्टि से लिंगपूजा का गुह्याथ मा बताया गया है ।