लीक

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

लीक ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ लिख्]

१. लंबा चला गया चिह्व । लकीर । रेखा । क्रि॰ प्र॰—खींचना । मुहा॰—लीक करके=दे॰ 'लोंक खींचकर' । उ॰—आगम निगम पुरान कहत करि लीक ।—तुलसी (शब्द॰) । लीक खींचना= (१) किसी बात का अटल और दृढ़ होना । इस प्रकार स्थिर किया जाना कि न टले । (२) मर्यादा बंधना । व्यवहार का प्रतिबंध या नियम स्थापित होना । हद या कायदा मुकर्रर होना । (३) साख बँधना । प्रतिष्ठा स्थिर होना । उ॰—हरि चरनारबिंद तजि लागत अनत कहूँ तिनकी मति काँची । सूरदास भगवंत भजन जे तिनकी लोक चहूँ दिसि खाँची ।—सूर (शब्द॰) । लीक खोंचकर=इस बात की दृढ़ प्रतिज्ञा करके कि ऐसा ही होगा । निश्चयपूर्वक । जोर देकर । उ॰— सूर श्याम तेरे बस राधा, कहति लीक मैं खाँची ।—सूर (शब्द॰) ।

२. गहरी पड़ी हुई लकीर ।

३. गाड़ी के पहिए से पड़ी हुई लकीर । उ॰—लीक लीक गाड़ी चलै लीकै चलै कपूत ।—(शव्द॰) ।

४. चलते चलते बना हुआ रास्ते का निशान । ढुर्री । जैसे,— यही लोक पकड़े सीधे चले जाओ । मुहा॰—लीक पकड़ना=ढुर्री पर चलना । पगडंडी पर होना । लोक पीटना=पुराने निकले हुए रास्ते पर चलना । चली आती हुई प्रथा का ही अनुसरण करना । बँधी हुई रीति या प्रणाली पर ही चलना । लोक लोक चलना=दे॰ 'लोक पीटना' ।

५. महत्व या प्रतिष्टा । मर्यादा । नाम । यश । उ॰—दंपति धरम आचरन नीका । अजहुँ गाव श्रुति जिन्हकैं लोका ।—तुलसी (शब्द॰) ।

६. बँधी हुई मर्यादा । लोकव्यवहार की बंधा हुई सीमा या व्यवस्था । लोकनियम । उ॰—नँदनदन केदज नेह मेह जिन लोक लोक लापी ।—सूर (शब्द॰) ।

७. बँधा हुई विधि । रीति । प्रथा । चाल । दस्तुर ।

८. हद । प्रतिबध ।

९. कलंक की रेखा । धब्बा बदनामी । लाछन । उ॰— तिहि देखत मेरी पट काढ़त लोक लगा तुम काज ।—सूर (शब्द॰) ।

१०. गिनती के लिये लगाया हुआ चिह्न । गिनती । गणना । उ॰—बारिदनाद जेठ सुत तासू । भट मह प्रथम लोक जग जासू ।—तुलसी (शब्द॰) ।

लीक ^२ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] मटियाले रंग की एक चिड़िया जो बत्तख से कुछ छोटी होती है ।

२. दे॰ 'लोख' ।