लूक

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

लूक ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ लुक] एक प्रकार का जलता हुआ पिंड दो आकाश से गिरता हुआ कभी कभी दिखाई पड़ता है । टूटा हुआ तारा । विशेष दे॰ 'उल्का' । उ॰—(क) दिन ही लूक परन विधि लागे ।— मानस, ६ । ३१ । (ख) लूक न असनि केतु नहिं राहू ।— मानस, ६ । ३१ ।

लूक ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ लुक(=जलना)]

१. अग्नि को ज्वाला । आग की लपट ।

२. पतली लकड़ी जिसका छोर दहकता हुआ हो । जलती हुई लकड़ी । लुत्ती । उ॰— दोउ लियो ठीक विचारि, इक लूक लीन्हो बारि ।— रघुराज (शब्द॰) । मुहा॰—लूक लगाना=जलती लकड़ी या बत्ती छुलाना । आग लगाना । उ॰— मारि मुलूक में लूक लगायों ।— लाल (शब्द॰) ।

३. गरमी के दिनों की तपी हवा । तप्त वायु का झोंका जो शरीर में लपट की करह लगे । लू । उ॰—ए ब्रजचंद्र ! चलौ किन वा ब्रज, लूकैं बसंत की ऊकन लागों ।— पद्माकर (शब्द॰) ।

४. टूटा हुआ तारा । उल्का । लूक । उ॰— सुमारि राम तरीके तोयनिधि लंक लूक सो आया ।—तुलसी (शब्द॰) ।