लूटना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]लूटना क्रि॰ सं॰ [सं॰ लुट् (=लूटना)]
१. बलात् अपहरण करना । जबरदस्ती छीनना । भय दिखाकर, मार पटिकर या छीन झपटकर ले लेना । जैसे,—रास्ते में डाकुओं ने सारा माल लूट लिया । उ॰— (क) केशव फूलि नचैं भ्रकुटी, कटि लूटि नितंब लई बहु काली ।—केशव (शब्द॰) । (ख) जानी न ऐसी चढा चढ़ी में केहि धौं कटि बीच ही लूटि लई सी ।— पद्माकर (शब्द॰) । (ग) चोर चख चोरिन चलाक चित चोरी भयो, लूटि गई लाज, कुल कानि को कटा भयो ।—पद्माकर (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—लेना । यौ॰—लूटना पाटना । लूटना मारना । मुहा॰—लूट खाना=दूसरे का धन किसी न किसी प्रकार ले लेना ।
२. बरबाद करना । तबाह करना ।
३. धोखे से या अन्यायपूर्वक किसी का धन हरण करना । अनुचित रीति से किसी का माल लेना । जैसे,— कचहरी में जाओ, तो अमले लूटते हैं । मुहा॰— (किसी को) लूट खाना=किसी का धन अनुचित रीति से ले लेना । किसी का माल मारना ।
४. बहुत अधिक मूल्य लेना । वाजिब से बहुत ज्यादा कीमत लेना । ठगना । जैसे,— वह दूकानदार ग्राहकों को खूब लूटता है ।
५. मोहित करना । मुग्ध करना । वशीभूत करना । मन हाथ में करना । उ॰— छूटी घुँघरारी लट, लूटी है बधूटी बट, टूटी चट लाज तेंन जूटी परी कहरैं ।— दीनदयाल (शब्द॰) ।
५. भोग करना । भोगना । जैसे,—सुख लूटना, आनंद लूटना । विशेष— इस क्रिया का प्रयोग सुख या आनंद का भोग करने के अर्थ में भी सुख, आनंद, मोज आदि कुछ शब्दों के साथ होता है । जैसे,—आनंद लूटना सुख लूटना ।