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लोकल

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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लोकल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. स्थानविशेष जिसका बोध प्राणी को हो । विशेष—उपनिषदों में दो लोक माने गए हैं—इहलोक और परलोक । निरुक्त में तीन लोकों का उल्लेख मिलता है— पृथ्वी, अंतरिक्ष और द्युलोक । इनका दूसरा नाम 'भू:', 'भुव:' और 'स्व:' है । ये महाव्याहृति कहलाते हैं । इन तीन महाव्याहृतियों की भाँति चार और 'मह:', 'जन:', 'तप:' और 'सत्यम्' शब्द हैं, जो तीनों महाव्याहृतियों के साथ मिलकर सप्तव्याहृति कहलाते हैं । इन सातो महाव्याहृतियों के नाम से पौराणिक काल में सात लोकों क ी कल्पना हुई, जिनके नाम इस प्रकार हैं—भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपलोक और सत्यलोक । फिर पिछे इनके साथ सात पाताल—जिनके नाम अतल, नितल, वितल, गभस्तिमान, तल, सुतल और पाताल हैं—और सब मिलाकर चौदह लोक किए गए । पुराणों में पातालों के नाम में मतभेद है । पद्मपुराण में इनके नाम अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, और पाताल बतलाए गए हैं । अग्निपुराण में अतल, सुतल, वितल, गभस्तिमान्, महातल, रसातल और पाताल; तथा विष्णुपुराण में अतल, वितल, नितल, गभस्तिस्मान्, महातल, सुतल और पाताल इनके नाम लिखे गए हैं । इस प्रकार चौदह लोक या भुवन माने गए हैं । सुश्रुत में लोक दो प्रकार का माना गया है—स्थावर और जंगम ।

२. संसार । जगत् ।

३. स्थान । निवासस्थान । जैसे,—ब्रह्म लोक, विष्णु लोक इत्यादि ।

४. प्रदेश । विषय । दिशा । जैसे,— लोकपाल, लोकपति इत्यादि ।

५. लोग । जन । उ॰—माधव या लगि है जग जीजतु । जाते हरि सों प्रेम पुरातन बहुरि नयो करि कीजतु । कहँ रवि राहु भयो रिपुमति रचि विधि संजोग बनायो । उहि उपकारि आजु यह औसर हरि दर्शन सचु पायो । कहाँ बसहिं यदुनाथ सिंधु तट कहँ हम गोकुल बासी । वह वियोग यह मिलनि कहाँ अब काल चाल औरासी । सूरदास मुनि चरण चरचि करि सुर लोकनि रुचि मानी । तब अरु अब यह दुसह प्रमानी निभिषो पीरि न जानी । सूर (शब्द॰) ।

६. समाज । मानव जाति । उ॰—(क) सब से परम मनोहर गोपी । नँद नंदन के नेह मेह जिन लोग लीक लोपी ।—सूर (शब्द॰) । (ख) सो जानब सतसंग प्रभाऊ । लोकहु बेद न आन उपाऊ ।—तुलसी (शब्द॰) ।

७. प्राणी । उ॰—उगेहु अरुन अवलोकहु ताता । पंकज लोक कोक सुखदाता ।—तुलसी (शब्द॰) ।

८. यश । कीर्ति । उ॰—लोक में लोक बड़ो अपलोक सुकेशव दास जो होऊ सो होऊ ।—केशव (शब्द॰) ।

९. दृश्य या देखने योग्य वस्तु [को॰] ।

१०. प्रकाश (को॰) ।

११. ७ या १४ की संख्या ।

१२. अपना या निज का स्वरूप (को॰) ।

१३. फज (को॰) ।

१४. भोग्य वस्तु (को॰) ।

१५. चक्षुरिद्रिय । देखने की इंद्रिय । नेत्र (को॰) ।

लोकल ^२ संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का पक्षी जो बत्तख से बड़ा और खाकी रंग का होता है ।

लोकल वि॰ [अं॰]

१. प्रांतिक । प्रादेशिक ।

२. किसी एक ही स्थान जिले, नगर या प्रदेश आदि से संबंध रखनेवाला । स्थानीय । प्रादेशिक । यौ॰—लोकल बोर्ड । लोकल गवर्नमेंट ।

लोकल बोर्ड संज्ञा पुं॰ [अं॰] वह स्थानीय समिति जिसके सभ्यों का चुनाव किसी स्थान के कर देनेवाले करते हों और जिसके अधिकार में उस स्थान की सफाई आदि की व्यवस्था हो ।