लोचना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]लोचना † ^१ क्रि॰ स॰ [हिं॰ लोचन]
१. प्रकाशित करना ।
२. रुचि उत्पन्न करना । उ॰—निसि बासर लोचन रहत अपनो मन अभिराम । या तैं पायो रसिक निधि इन नै लोचन नाम ।— रसनिधि (शब्द॰) ।
३. अभिलाषा करना । उ॰—स्वर्ग में देवगण भी लोचते हैं और इस बात के लिये तरसते हैं कि भारत की कर्मभूमि में किसी तरह एक बार हमारा जन्म होता ।—हिंदी प्रदीप (शब्द॰) ।
लोचना ^२ क्रि॰ अ॰ शोभित होना । उ॰—लोचै परी सियरी पर्यंक पै बीती घरीन खरी खरी सोचै ।—पद्माकर (शब्द॰) ।
लोचना ^३ क्रि॰ अ॰
१. अभिलाषा करना । कामना करना । उ॰— (क) कहति है सकोचति है सखी को बोलाइबे को लोचति है भटू बैठी सोचति है मन तें ।—रघुनाथ (शब्द॰) । (ख) कुँअरि सयानि बिलोकि मातु पितु सों कहि । गिरिजा जोग जुरहिं बर अनुदिन लोचहिं ।—तुलसी (शब्द॰) ।
२. ललचना । तरसना । उ॰—अब तिनके बंधन मोचहिंगे । दास बिना पुनि हम लोचहिंगे ।—सूर (शब्द॰) ।
लोचना ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ लुञ्चन] नाई । हज्जाम (क्व॰) ।
लोचना ^६ संज्ञा पुं॰ [सं॰ रोचन ( =रोली, हरिद्रा)]
१. कन्या के संतान होने पर कन्या के पितृगृह से भेजा जानेवाला मांगलिक उपहार ।
२. बहू के संतानवती होने पर उसके पिता तथा अन्य सगे संबंधियों के यहाँ भेजा जानेवाला शुभ संदेश ।