लोध

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

लोध संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ लोध्र, लोध]

१. एक प्रकार का वृक्ष जो भारतवर्ष के जंगलों में उत्पन्न होता है । विशेष—इस वृक्ष की छाल रँगने, चमड़ा सिझाने और ओषधियों में काम आती है । छाल को गरम पानी में भिगो देने से पीला रंग निकलता है । कहीं कहीं इसकी छाल पानी में उबालकर भी रंग निकाला जाता है । छाल को सज्जी मिट्टी के साथ पानी में उबालने से लाल रंग निकलता है, जिससे छींट छापते हैं । वैद्यक में इसकी छाल और लकड़ी दोनों का प्रयोग होता है । इसकी छाल कुछ कसैली होती है पेचिश आदि पेट के कई रोगों में दी जाती है । इसका गुण ठंढा है और २० ग्रेन तक इसकी मात्रा है । इसके काढ़े का भी प्रयोग किया जाता है । लोध की लकड़ी के काढ़े से कुल्ला करने से मसूढ़े से रक्त निक- लना जाता रहता है और वह द्दढ़ हो जाता है । इसकी लकड़ी जल्दी फट जाती है; पर मजबुत होती है औऱ कई तरह के काम में लाई जाती है ।

२. एक जाति का नाम ।