वङ्ग
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]वंग संज्ञा पुं॰ [सं॰ बङ्ग]
१. मगध या बिहार के पूर्व पड़नेवाला प्रदेश । बंगाल । विशेष—ऋग्वेद में सबसे पूर्व पड़नेवाले जिस प्रदेश का उल्लेख है, वह 'कीकट' (मगध) है । अथर्व संहिता में 'अंग' देश का भी नाम मिलता है । संहिताओं में 'वंग' नाम नहीं मिलता । ऐतरेय आरणयक में ही सबसे पहले वंह देश की चर्चा आई है; और वहाँ के निवासियों की दुर्बलता और दुराहार आदि का उल्लेख पया जाता है । बात यह है कि संहिता काल में कीकट और वंग देश में अनार्यों का ही निवास था । आर्य लोग वहाँ तक न पहुँचे थे । बौधायन धर्मसूत्र में लिखा है कि वंग, कर्लिग, पुंड्र आदि देशों में जानेवाले को लौटने पर पुनस्तोम यज्ञ करना चाहिए । मनुस्मृति में तीर्थयात्रा के लिये जाने की आज्ञा है । इससे जान पड़ता है कि उस समय आर्य वहाँ बस गए थे । शतपथ ब्राह्म ण के समय में मिथिसा में विदेह वंश प्रतिष्ठित था । रामायण में प्राग् ज्योतिःपुर (रंगपुर से लेकर आसाम तक प्रागज्योतिष प्रदेश कहलाता था) की स्थापना का उल्लेख है । महाभारत (आदिपर्व) में लिखा है कि क्षत्रिय राजा बलि को कोई संतति न हुई । तब उन्होंने अंघे दी्र्घतमा ऋषि द्वारा अपनी रानी के गर्भ से पाँच पुत्र उत्पन्न कराए, जिनके नाम हुए- अंग, वंग, कलिंग, पुंड्र और सुह्म । इन्हीं के नाम पर देशों के नाम पड़े ।
२. राँगा नाम की धातु ।
३. राँगे का भस्म ।
४. कपास ।
५. बैगन । भंटा ।
६. ऱाजा बलि का पुत्र । एक चंद्रवंशी राजा (को॰) ।
७. एक धातु । सीसा । सीसक ।